ग़ज़ल - अविनाश ब्यौहार
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हिंदी ग़ज़ल (चौपाई छंद)
जय-जय हे जगदम्ब भवानी।
महिमा इनकी है लासानी।।
बुरा चाहने वाला मानव,
हुआ शर्म से पानी -पानी।
तीसमारखाँ खुद को समझा,
लेकिन निकला वो अज्ञानी।
हो अभाव तो मैंने देखा,
होती है बस खींचातानी।
मनमुटाव है जड़ें जमाता,
घर-घर की है यही कहानी।
अविनाश ब्यौहार
जबलपुर मप्र
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