मवाली (लघुकथा )- डॉ मनोरमा गौतम

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                              मवाली
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लम्बाई रही होगी उसकी लगभग छः फीट शरीर भी काफी भारी - भरकम था, रंग काला, माथा चौड़ा , हेयर बैंड लगा लम्बे खुले बाल , एक कान में बाली , हांथों में कड़े पहने मवाली जैसा दिखने वाला वह व्यक्ति जिसकी उम्र रही होगी लगभग 35 वर्ष किन्तु अपनी शारीरिक गठन के कारण 45 वर्ष का लग रहा था जब कोर्ट में जज के सामने आ खड़ा हुआ आश्चर्यचकित हो मैं उसे देखने लगी l उसको देख मैं मन ही मन उसके चरित्र तथा व्यक्तित्व दोनों का ही अनुमान लगाने लगी थी… जानती हूं कि किसी व्यक्ति के पहनावे - ओढ़ावे , चाल - ढाल से उसके चरित्र तथा स्वभाव को परिभाषित नहीं किया जा सकता लेकिन फिर भी पता नहीं क्यूं उसको देख मैं उसके विषय में चाह कर भी अच्छा नहीं सोंच पा रही थी l शायद हमारी परवरिश का ही असर है कि मैं उसे वही समझने के लिए विवश थी जिस रूप में उसे देख रही थी l अपने दोनों हांथो को आगे की ओर कर मुट्ठी बांधे सिर झुकाए वो चुपचाप खड़ा था उसके बाई ओर काला कोट पहिने उसका वकील उसको निर्दोष साबित करने के जद्दोजहद में लगा हुआ था l प्रतिपक्ष में खड़ी पीड़िता कोई और नहीं उसकी पत्नी थी जोकि गोद में छोटा बच्चा लिए बिना वकील के ही खड़ी थी… वो बार - बार जज को सम्बोधित करती हुई बोल रही थी जज साहब ये मेरा पति नहीं जानवर है जानवर… ये गुंडा - मवाली है इसने मेरी ज़िंदगी नर्क से भी बत्तर बना दी है…मैं इसकी ब्याहता हूं जज साहब पर इसने मुझे वैश्या बनाकर रख दिया है रोज नए - नए लोगो को लाता है और मुझे उसके साथ घर में बंद कर बाहर से ताला लगाकर चला जाता है... इसे छोड़िएगा नहीं जज साहब… इसे छोड़िएगा नहीं…आज इसने मेरे जिस्म का सौदा किया है कल ये मेरी इस नन्ही सी बेटी को भी बेच देगा...लगातार उसकी आँखों से आंसू बहे जा रहें थे उसका गला भारी हुए जा रहा था बच्चे को गोद में लिए रोती - रोती वो जमीन पर बैठ जाती है l कोर्ट में कुछ पल के लिए सन्नाटा पसर जाता है बस उस स्त्री की आवाज ही गूंज रही होती है… वहीं थोड़ी सी दूरी पर खड़ी मैं चुपचाप सब कुछ अपनी आँखों से देख रही थी… ठीक उसके बाद सुनवाई के लिए अगला नंबर मेरा ही था ल

( डॉ. मनोरमा गौतम
   नई दिल्ली
   मो. 9910709651 )

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