तीन मुक्तक _ डॉ केवलकृष्ण पाठक
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तीन मुक्तक
उठो, प्रतीक्षा करती तेरी राह है।
जीवन जीना तेरी सुन्दर चाह है।
भय संकट से मत तुम घबराना,
आंधी तूफानों की क्या प्रवाह है।
अपने अंदर शांति को जो पा गया।
सारे ही संसार के वह सुख पा गया।
नहीं मांगता कुछ भी जो किसी से,
ह्रदय की मधुरता को वह पा गया।
हर अँधियारा कहता जगमग होने को।
दुर्जन का अंतर्मन कहता रोने को।
उठ रे मानव,ज्योतित कर जग-जन-मन,
मनुजता के बीज पड़े हैं बोने को।
डा. केवलकृष्ण पाठक
संपादक,रवींद्र ज्योति मासिक,343 /19 ,
आनद जवास,गीता कालोनी,जींद
126102 (हरियाणा)मो.919518682355
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