पुत्तन माट्साब (हास्य-व्यंग्य)- श्री घनश्याम सहाय

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।। पुत्तन माट्साब।।
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     ज़ाहिद सराब पीने दे महज़ीद में बइठ कर।
      या उ जगहा बता जहॅंवा खुदा न हो।

शेरो-शायरी के शौकिन पुत्तन माहटर वैसे तो विद्यालय में विज्ञान शिक्षक हैं लेकिन उनके हृदय में सदैव ग़ालिब,ज़ौक जैसे शायर जिंदा रहते हैं।भले ही ज़बान में दोष हो, लेकिन पुत्तन माहटर जहाॅं कहीं भी होते मुशायरा जमाने से बाज नहीं आते।
              पुत्तन आज भी स्टाॅफ रूम में मुशायरा जमाये बैठे हैं।जैसे ही विद्यालय में नये-नये नियुक्त हुए मियाॅं मुशर्रफ़ ने पुत्तन का शेर सुना बीच में टपकते हुए कहा--मियाॅं पुत्तन! क्यों ग़ालिब का जनाजा निकालने पर तुले हुए हैं।यह जो शेर आपने पढ़ा उसका मतलब भी जानते हैं?

पुत्तन बोल उठे--मियाॅं मुशर्रफ़!मैंने जितना ग़ालिब को पढ़ा है न,उतना आपने भी मियाॅं होकर नहीं पढ़ा होगा।

मुशर्रफ़--ठीक है पढ़ा होगा लेकिन इस शेर का मतलब बताइए जिससे आपने अभी-अभी पढ़ा है।

पुत्तन ने अहंकार से अपनी गर्दन ऊॅंची करते हुए कहा--मतलब?अभी बताता हूॅं और पुत्तन माट्साब ने शेर का मतलब बताते हुए कहा--

इस शेर में मियाॅं गालिब कहते हैं--ऐ खुदा के बन्दे!हमको महजीद में बैठकर सराब पीने दो आ उ जगहा बताओ जहॅंवा खुदा नहीं रहता हैं। गालिब मिंयाॅं कहते हैं तुम अइसन जगहा बताओ जहॅंवा हम इत्मीनान ले सराब पी सकें।

पुत्तन की व्याख्या सुन मुशर्रफ़ ने अपना सिर पकड़ लिया और कहा-
आपने तो ग़ालिब का जनाजा ही निकाल दिया पुत्तन मियाॅं।

पुत्तन--जनाजा निकाल दिया?मियाॅं, का  गालिब का जनाजा दोबारा निकलिएगा? गालिब का जनाजा निकले तो---इ बताइए इसमें गलती का हैं।

मुशर्रफ़--पुत्तन माट्साब!आपने जो मतलब निकाला,माशाल्लाह... --लेकिन जो आप समझा रहे हैं----ख़ैर जाने दीजिए। मियाॅं पुत्तन! मिर्ज़ा ग़ालिब ने शेर कुछ यूॅं पढ़ा था--

                  ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर
                  या वो जगह बता जहाॅं ख़ुदा ने हो।

मतलब,ग़ालिब कहते हैं,ऐ ख़ुदा के बंदे मुझे मस्जिद में बैठकर शराब पीने दे या ऐसी जगह बता जहाॅं ख़ुदा न रहता हो,जहाॅं मैं चैन से बैठकर पी सकूॅं।

पुत्तन माट्साब--मियाॅं हो त हमसे जादे जानते हो गालिब का बारे में?हमहूॅं त उहे पढ़ें जवन तुम पढ़ें।

मुशर्रफ़ माट्साब ने पुत्तन की बात काटते हुए कहा--जी नहीं,आपने शेर गलत पढ़ा। आपने पढ़ा--
          ज़ाहिद सराब पीने दे महज़ीद में बइठ कर।
           या उ जगहा बता जहॅंवा खुदा न हो।

यह सरासर ग़लत है।इसकि मतलब हुआ--ऐ ख़ुदा के बंदे मुझे मस्जिद में बैठकर मृगतृष्णा पीने दे या फिर ऐसी जगह बता जो खुदा न रहता हो।
पुत्तन माट्साब! सराब नहीं शराब।सराब का मतलब मृगतृष्णा होता है। खुदा नहीं ख़ुदा। पुत्तन माट्साब! खुदा का मतलब खुदा हुआ होता है। पुत्तन माट्साब!जब खुदा के ख में नुक्ता लगा होता है तब ख़ुदा, ख़ुदा होता है वरना ख़ुदा,खुदा हो जाता है। पुत्तन माट्साब! ग़ालिब,ज़ौक का शौक़ रखते हैं न तो संजीदगी से ग़ालिब,ज़ौक पढ़िए।

पुत्तन माट्साब बस मुशर्रफ़ माट्साब को देखते हुए गोल-गोल ऑंखें घुमाते हुए कहा--हम भी तो उहे कहें, "खुदा"---

मुशर्रफ़ माट्साब ने पुत्तन माट्साब की बात काटते हुए कहा--माट्साब! खुदा नहीं ख़ुदा,सराब नहीं शराब--

तभी विद्यालय का के चपरासी ने पुत्तन माट्साब को आवाज़ लगा दी--- माट्साब!हेड्माट्साब ने कहा है कि पुत्तन माट्साब से कहो कि पता करें कि विद्यालय के इर्द-गिर्द कितने दारूबाज और  दारू बनाने वाले हैं--

पुत्तन माट्साब चपरासी की बात सुन भौंचक रह गए और तममाये हुए हेडमास्टर साहब के पास पहुॅंचे और कहा--हेड्माट्साब!ये चपरासी कह रहा है कि हमको दारूबाज पकड़ने जाना है?

हेडमास्टर--हाॅं,चपरासी सही कह रहा है।

पुत्तन माट्साब--सही कह रहा है? मतलब अब हमें पढ़ाना छोड़ के दारूबाजों की गिनती करनी होगी?जब माहटर लोग शराबी गिनत फिरेगा त पुलिस का करेगा,अस्कूल में आके पढ़ायेगा?

हेडमास्टर--वो सब हम नहीं जानते,सरकारी आदेश है।

पुत्तन--सरकारी आदेश है? सरकार क्या कहती है,शिक्षा की गुत्थियों को सुलझाने के बजाय माहटर मधुशाला खोजे?---और शायराना मिज़ाज के पुत्तन शेख़ इब्राहिम ज़ौक़ का शेर पढ़ उठे--

           'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला। 
         उन को मय-ख़ाने में ले आओ सँवर जाएँगे।

हेडमास्टर साहब ने कहा--अपना शायराना अंदाज अपने पास रखिए पुत्तन, और जाइए,जो कहा जा रहा है कीजिए।

पुत्तन माट्साब ने लम्बी साॅंस लेते हुए कहा--हाॅं साहब!हम तो मदरसे के बिगड़े हुए मुल्ला हैं,शायद इसलिए सरकार ने सॅंवारने के लिए हमें मय-ख़ानों की तलाश में भेज रही है।

  "बड़ी बे-आबरू होकर तिरे कूचे से हम निकले"।

और सरकारी आदेश के अनुसार पुत्तन माट्साब हर रोज़ सुबह शराबियों की तलाश में निकल पड़ते।हाल पुत्तन का कुछ इस तरह हो गया कि आज ग़ालिब होते तो पुत्तन के हाल का बखान कुछ यूॅं कहते---

मगर लिखवाए कोई सरकार की सीरत तो हमसे लिखवाए। 
 हर रोज़ हम घर से कान पर रख कर क़लम निकले।

मय-ख़ाने और शराराबियों की खोज में निकले पुत्तन ने आज एक राहगीर से ग़ालिब के एक शेर की तोड़-मरोड़ करते हुए शायराना अंदाज़ में पूछा--

कहाॅं मय-ख़ाने का दरवाज़ा ग़ालिब और कहाॅं Wise।
 अगर पहुॅंचू वहाॅं मैं तो वो मय-ख़ाने से ना निकले।

राहगीर भी शायद कोई मास्टरमाइंड मास्टर ही था। उसने पुत्तन को मय-ख़ाने का रास्ता बता दिया,जहाॅं से अभी-अभी वह निकला था। पुत्तन मय-ख़ाने तक पहुॅंचे। पुत्तन ने मय-ख़ाने में तरह-तरह के दारूबाज देखे, लेकिन पुत्तन को एक दारूबाज बहुत जचाॅं जिसने पुत्तन को देखते ही असग़र गोंडवी और बशीर बद्र के शेर छोड़ दिए--

      एक ऐसी भी तजल्ली आज मय-ख़ाने में है।
       लुत्फ़ पीने में नहीं है बल्कि खो जाने में है।

---और दारूबाज ने पुत्तन में खोते हुए कहा--

            न तुम होश में हो न हम होश में हैं।
            चलो मयकदे में वहीं बात होगी।

पुत्तन माट्साब!न तुम होश में हो न मैं होश में हो।पुत्तन माट्साब! तुम्हें सरकारी आदेश का नशा है और हमें दारू का,हम दोनों ही नशे में है।न तुम होश में हो न मैं होश में हूॅं,तो फिर----कौन किसकी तलाश कर करेगा,यह ख़ुदा पर छोड़ दो।

दारूबाज की बात सुन पुत्तन कुछ देर को गंभीर रहे और फिर ने शराबियों को शराब के हानिकारक प्रभाव के बारे में बताना शुरू किया,तभी एक दूसरा दारूबाज  फ़िराक़ का शेर पढ़ उठा--

         आए थे हँसते खेलते मयख़ाने में 'फ़िराक़'।
          जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए।

पुत्तन माट्साब सोच में पड़ गए,"क्या संजीदगी के लिए शराब जरूरी है"? यदि ऐसा है तो फिर संजीदा होने के लिए सरकार को भी पीनी चाहिए। हमारी सरकार संजीदा नहीं,यदि संजीदा होती तो हम मास्टर मय-ख़ाने, साक़ी,और पियक्कड़ों को ढूॅंढनें में अपनी उर्जा न खपा रहे होते।हम तो चैन से क्लास पढ़ा रहे होते, दारूबाज खोजने के चक्कर में मय-ख़ाने मय-ख़ाने की धूल नहीं फाॉंक रहे होते।पुत्तन ने कान के उपर रखी कलम उतारी और मय-ख़ाने और पियक्कड़ों के नाम नोट करने लगे। पियक्कड़ों का नाम नोट करने लगे। कोई पीते या न पीते मय-ख़ाने बैठने के बाद नशा हो ही जाता है। दारूबाजों के नाम नोट करने के बाद पुत्तन मय-ख़ाने से लड़खड़ाते हुए निकल,घर की ओर चल दिए। 

पुत्तन को मय-ख़ाने की ओर से आता हुआ देख एक राहगीर ने पूछ दिया--क्या मियाॅं,कहाॅं से?

पुत्तन माट्साब ने कोई ज़वाब नहीं दिया और ख़ुमार बाराबंकवी का शेर पढ़ते हुए आगे बढ़ गए --

        गुज़रे हैं मयकदे से जो तौबा के बाद हम।
         कुछ दूर आदतन भी क़दम डगमगाए हैं।

 कौन है जिसने मय नहीं चक्खी,कौन झूठी क़सम उठाता है।
  मयकदे से जो बच निकलता है तेरी आँखों में डूब जाता है ।

मय और ऑंखों का नशा बराबर ही होता है,--और थके-हारे पुत्तन माट्साब घर पहुॅंच कर बीबी की मदहोश ऑंखों में बेहोश होकर डूब गए।  




    -©घनश्याम सहाय
     डुमराॅव,बक्सर,बिहार
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