ललन माट्साब का दर्शन (हास्य-व्यंग्य)- श्री घनश्याम सहाय
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ललन माट्साब का दर्शन
(हास्य-व्यंग्य)
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आज ललन माट्साब बड़े तैश में है।उनके तैश का कारण है नया सरकारी फरमान जिसके अनुसार शिक्षकों को अपने-अपने क्षेत्र में दारूबाजों की तलाश करनी है।
सुगन माट्साब ने ललन माट्साब को तैश में देखकर पूछा--
---का हुआ माट्साब?काहें अतना खीस में हैं।
ललन माट्साब--खीस में?खीस बरेगा नहीं सुगन माट्साहेब,--माहटर बनने के लिए सार के सरकार को बी०एड० आ डी०एल०एड० का डीग्री चाहिए,बिना बी०एड० का ट्रेनिंग के आप माहटर नहीं बन सकते लेकिन इन दारूबाजनों को खोजे वास्ते इस सरकार ने हम माहटरन को कौउनों ट्रेनिंग नहीं दिया,सार के बी०एड० का डीग्री पर सरकार दारूबाज खोजवाना चाहती है।
माट्साहेब! "खोजवा" का हाल बना दिया है हमलोगन का। गाॅंव-गाॅंव जाओ, हाय-हाय कर ताली पीटो और पूछते चलो ए बहिनी तोहरे घर में कौउनो पियक्कड़ है का।सार के शराबी सब कुकुर तक लिलकार दे रहा है। हाल-बेहाल हो गया है माट्साहेब।एक देने शराबियन का कुकुर आ दोसरा देने सरकार।एक देने से भागो त दोसरका चहेंटता है आ दोसरका देने से भागो त पहिलका चहेंटता है।बुझाईए नहीं रहा है कि दूनो में से कुकुर कौन है।इ चहेंटा-चहेंटी में मय माहटरन के जिनगी अझुरा गया है माट्साहेब।---और ललन मास्टर ने खोजवों की तरह ताली पीटते हुए हाय-हाय कर उठे।
ललन मास्टर ने हाय-हाय किस संदर्भ में कहा सुगन मास्टर इसका गेसिंग कर रहे हैं। ललन माहटर के हाय-हाय का अर्थ निकाल रहे हैं लेकिन ललन माहटर का हाय-हाय अपने आप में कई अर्थ समेटे सुगन माहटर को मुॅंह बिरा रहा है।
क्रोध में मुॅंह से झाग फेंकते ललन माहटर कुछ देर को शाॅंत हुए। अब तक विद्यालय की दीवार पर चिपका दारूबंदी का सरकारी फरमान ललन माहटर के थूक से सराबोर चुका था।सुगन माहटर समझ नहीं पा रहे थे कि ललन माहटर अपने माहटर होने की बेचारगी पर थूक रहे हैं या फिर ताज़ा-ताज़ा आए सरकारी फरमान पर।
उधर जैसे ही सुग्रीव माहटर को यह बात पता चली कि ललन माहटर सब माहटर के खोजवा कह रहे हैं तो भड़क उठे। सुग्रीव माहटर तमतमाये हुए आए और ललन माहटर से कहा--
--अरे ललनवा!तोरा खोजवा का पदवी लेबे ला हउ त ले लेकिन बाकी सब माहटरन के खोजवा कहे के तोरा अधिकार के दिया रे?
सुग्रीव माहटर के बात सुन ललन माहटर भी भड़कते हुए कुर्ता का बाॅंह चढ़ा डाले और कहा--ए सुग्रीव जरा कम गरमी देखाओ ना त इहें पटक के फफेली फोर देंगे।हम खोजवा नहीं त का हैं रे सुगरीउवा? पियक्कड़ खोजना आसान काम है का? शराबी खोजे खातिर खोजवा नियन घरे-घरे घुमल चलो।खोजवा घर-घर घूम के जनमतुआ देखले चलता है कि कहीं जनमतुआ खोजवा त नहीं आउर माहटर घरे-घरे घूमल चलता है कि घर में कवनों पियले तो नहीं।का फरक रह गया खोजवा आ माहटर में,कहो सुग्रीव। एगो घूम-घूम के खोजवा खोजता है अउर दूसरा पियक्कड़।है कवनो फरक खोजवा अउर माहटर में?
किसी तरह सुगन माहटर साहेब अउर पड़ियायीन महटराइन ने बीच-बचाव करके दोनों को अलग किया।इस दरम्यान ललन माहटर ने अपने मुॅंह से इतना थूक उगला कि सुग्रीव माहटर नहा गए। कुछ देर शाॅंत रहने के पश्चात ललन माहटर फिर शुरू हो गए। सुगन माहटर,शशी माहटर और रीता महटराइन ने ललन मास्टर को चुप कराने की बहुत कोशिश की लेकिन जिसने बचपन से लेकर आज तक दारू देखा नहीं,चखा नहीं उसे दारूबंदी का काम सौंपा जा रहा है,उसकी भड़क तो बनती ही थी।
ललन माहटर ने क्षुब्ध हो कहा--सुगन माट्साब!हम कवनों पुलिस हैं जो दारू खोजते चलें?जब माहटरे दारू खोजेगा त पुलिस का करेगा?कभी सरकार पुलिस आ किसी सरकारी करमचारी को माहटर का पढ़ाने-लिखाने वाला ड्यूटी लगाया है कि जाओ आज दसवीं में अलजबरा पढ़ा आओ,पोयम पढ़ा आओ? जब सरकार हमलोग का ड्यूटी उ लोग को नहीं लगा रहा त उनका ड्यूटी हम माहटर लोग को काहे लगा रहा है?
सुग्रीव बाबू!आप तो बड़ा खिसला रहे थे,इ बात बताइए जवन आदमी आज तकले दारू देखा नहीं,दारू चखा नहीं उ दारू चिन्हेगा कइसे? अइसन लगता है सब गाॅंजा पी के फरमान जारी करता है।
का जाने कवन-कवन नाम देता है दारू के--देशी,वोदका,रम, माल्टा अउर ना जाने का-का।जदी माहटर से दारू पकड़वाना था त दारू का भेरायटी चिन्हें का ट्रेनिंग करवा देना था न,कि कवन माल्टा है,कवन देशी है,कवन चखना है। इस दारू के पकड़म-पकड़ाइ में कहीं इ खेला जन हो जाए कि इधर हम दारूबाज पकड़ने में बीजी हो जायें अउर उधर हमारा विद्यार्थी सब दारूबाज हो जाए---
ललन छोड़ पाठशाला।
खोजत चल मधुशाला।।
बगल से दारूबंदी का प्रचार करती गाड़ी गाना बजाते हुए गुजरी--
बात मान राजा गाॅंजा में कउन माजा।
शराब पियल छोड़ द दूध पीय ताजा।
शराब पियल------
ललन माहटर ने बज रहे गाना पर ताना मारा--सुन लीजिए सुगन माट्साहेब गाना--हम तो हइए हैं इ भी है।---और ललन माहटर ने बज रहे गाने के सुर में सुर मिला दिया---
ए हो ललन माहटर,माहटरी भुला जा।
खोजत चल राजा,शराब आउर गाॅंजा।
दिमाग से मेरा सभ गणित बीछिलाया।
केमिस्ट्री-फिजिक्स भी बहुत अझुराया।
खोजत चलो दारू बजावत बैंड-बाजा।
खोजत चल राजा,शराब आउर गाॅंजा।
माल्टा आउर देशी में घुला बाॅयलोजी।
मिलता जो शराबी दिखाता लउर-गोजी।
दहकत करेजा सरऊ देखते सेरा जा।
खोजत चल राजा,शराब आउर गाॅंजा।
घनश्याम सहाय
डुमराॅव,बक्सर, बिहार
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