सिग्नल_वाली_औरत (कहानी)- मौसमी चन्द्रा
* सिग्नल_वाली_औरत*
----------------
कार जैसे ही सिग्नल पर रुकी,काली-कलूटी सी औरत गोद में बच्चा लिये गाड़ी के शीशे पोंछने लगी।
मैंने अपने पति राहुल की ओर देखा।
"रोज दिख जाती है ये! चिढ़ है मुझे इस औरत से!"
आशानुरूप राहुल का बड़बड़ाना चालू!
"तुम इतना ऑवररिएक्ट क्यों करते हो?वो अपना काम ही तो करती है,और तुमने तो इसे आज तक कभी पोंछने न दी अपनी कार!फिर इतना गुस्सा क्यों?"
मेरे ये कहते ही झुंझला कर बोला-
"मैं!और इसे छूने दूँ अपनी गाड़ी!बिल्कुल भी नहीं!मुझे तो ये बड़ी पहुंची हुई चीज लगती है।
"पहुंची हुई चीज!मतलब?"
मैंने चौंककर पूछा।
"हॉं!कभी गौर किया है तुमने, ये खुद कितनी बदसूरत है!पर इसके दोनों बच्चों को देखो!गोरे-चिट्टे!भले घर के बच्चे लगते हैं।इसकी बेटी को देखो,दूध जैसी गोरी है।बताओ कैसे?या तो ये किसी और के बच्चे लेकर भीख मांगने का काम करती है या चरित्रहीन है।तभी!"
राहुल की बात सुनकर मुझे गुस्सा आ गया-
"कुछ भी!अपने दिमाग का कचरा साफ करो।ये काली है हो सकता है पति गोरा होगा, उस पर गयी होगी बच्ची।चरित्रहीन होती तो गाड़ी के शीशे साफ करती...?अब हटाओ ये सब,देखो सिग्नल खुल गया।"
मैंने बात बदल दी।
इस बात के दो हफ्ते बाद ही एक शाम मैं और राहुल ऑफिस से लौट रहे थे।
जबरदस्त ट्रैफिक था।राहुल ने शॉर्टकट लिया।रास्ता शहर की डोमटोली से होकर था।मन तो नहीं था उधर से जाने का,पर मजबूरी थी।पतली गली ,दोनों ओर बांस की पत्तियों, फूस, प्लास्टिक से बने बेतरतीब से घर!
अचानक कार सड़क के बीचों-बीच बने मेनहोल से टकराई और रुक गयी।
ओह! राहुल ने उतरकर देखा
अगला टायर धँसा पड़ा था।
"हो गयी छुट्टी।मुझे तो टायर बदलनी भी नहीं आती,अब क्या करूँ?"
राहुल परेशान हो गया।
मैं भी नीचे उतर आयी और इधर-उधर देखने लगी।तभी आगे की झोपड़ी से किसी की आवाज़ आयी-
"क्या हुआ साहब?पंक्चर हो गया क्या?"
देखा तो एक आदमी जमीन पर बैठा टोकरी बीन रहा था।उल्टे तवे सा काला..दुबला-पतला एक पैर सूखा हुआ।लकवाग्रस्त!पास ही नीचे मिट्टी के बर्तन से एक ३-४ साल की बच्ची खेल रही थी।मुझे उस बच्ची का चेहरा देखा-देखा सा लगा,पर याद नहीं आया।
राहुल ने उसे देखकर अनसुना कर दिया।
"हाँ हॉं.. पंक्चर हो गया कोई मिलेगा क्या बनाने वाला,वैसे स्टेपनी है गाड़ी में।"
मैं इस उम्मीद में बोली शायद मदद मिल जाये कोई।
"दुकान तो नहीं है मेमसाहब पर हो जाएगा काम,बुलवा देता हूँ ।कर देगा।"
उसकी बात सुनकर राहत मिली।
"प्लीज बुला दीजिये"।
मेरे कहते ही उसने जोर से आवाज़ लगाई।
"ओ झुमरी!छोटू को बुलाकर ले आ!साहब लोग की गाड़ी रुकी पड़ी है।"
"ठीक है.."के स्वर के साथ जो औरत बाहर आयी वो वहीं थी!सिग्नल वाली औरत!काली-कलूटी बदसूरत, जिससे हदभर की चिढ़ थी राहुल को!
मैंने देखा अभी भी उसकी गोद में उसका गोरा-चिट्टा बच्चा था।
राहुल ने उसे देखा फिर कनखियों से मुझे देखकर फुसफुसाया--
"देख लिया न इसके पति को!कितना चमक रहा!हहह!दूधिया गोरा!ऊंह!अब बताओ क्या गलत कह रहा था मैं इसके बारे में।"
मैं चुप थी।
थोड़ी देर में वो औरत एक लड़के के साथ आती दिखी।
"लीजिये साहब ये कर देगा।ऐ छोटू चल जल्दी बना देना।बड़ी देर से खड़े हैं साहब लोग।"
वो जोर से बोला।
थोड़ी देर बाद!
"लो साब हो गया आपका काम।"
लड़के ने काम खत्म करके कहा।
राहुल ने जैसे ही पैसे देने के लिए पर्स निकाला।
"नहीं साब इत्ते से काम के क्या पैसे लूं उसपर भैया ने बोला करने को।"
"वो तुम्हारे भैया हैं?और ..उसकी पत्नी को तो मैंने देखा है सिग्नल पर गाड़ी के शीशे पोंछती है"।
मैंने पूछा।
"न! सगे भैया न है,पर हमसब इन्हें भैया जी ही बोलते हैं।हां वो करती है शीशे पोंछने का काम।क्या करें साब!हमारा सूप टोकरी बीनने का काम है पर अब लेता कौन है।पहले हर घर की रसोईघर में सूप-दौरी रहती थी।अब कौन रखता है।सिर्फ शादी ब्याह या छठ पर्व में।वहां भी पीतल-कांसे के बर्तन घुस गए हैं।भैया अपाहिज हैं तो घर चलाने के लिए भाभी करती है ऐसे छोटे मोटे काम।ऐसे दोनों बड़े भले इंसान हैं।"
छोटू के स्वर में उनके लिए इज्जत दिख रही थी।
"ऐसा क्या कर दिया इनदोनों ने?"
राहुल ने हैरत से पूछा।
"साब!ये दो बच्चियां देख रहे हैं आप?उसने उंगली से बाहर खेल रही बच्ची की तरफ इशारा किया।इनकी बेटियां नहीं है।रात के अंधेरे में कोई फेंक गया था।एक बच्ची तो मरणासन्न हालत में थी।पुलिस के डर से कोई उठा नहीं रहा था।पर भैया जी ने उठाया भी और जैसे-तैसे करके बच्चे का इलाज भी करवाया।दूसरी बच्ची इन्हें पोखर के किनारे फेंकी मिली थी।इतनी गरीबी फिर भी इन्होंने इन बच्चियों को अपने पास रख लिया।जान छिड़कते हैं दोनों।बहुत भले लोग हैं।"
वो तो चला गया।पर राहुल का चेहरा शर्म से झुका था।उसने एक नज़र टोकरी बीनते पति-पत्नी पर डाली और धीरे से मुस्कुरा दिया।आज उसके दिमाग के शीशे भी धुलकर चमक रहे थे।
-मौसमी चन्द्रा
कवयित्री व कहानीकार
पटना, बिहार।
★★★★★★
Post a Comment