तुम कौन हो मेरे !(कविता)- अंकिता गौराई
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तुम कौन हो मेरे !
तुम कौन हो मेरे!
यह बताना छूट गया
तुम जिंदगी हो मेरी
यह जताना छूट गया
कहाँ रहते हो आजकल
तुम्हारा पता बताना छूट गया
कहो न कुछ सुनना है तुमसे
जाने अनजाने कुछ सुनाना छूट गया
आते हो जब भी
जाने की हड़बड़ी क्यों है
तुम्हें देखते रहना लेकिन!
तुम्हारा ओझल होना चुभ गया
तुम्हारी आँखों में खुद को देखना
कितना सुकून यह तुम न समझोगे
कहो न कुछ.....यूँ
चुप कब तक रहोगे
समझते तो हो न तुम
लम्हें जिंदगी के कितने कम है?
समय कितना है यह बता पाना कठिन है
पर जितना है वे सब तुम्हारे है
यह बताना छूट गया।
- अंकिता गौराई
अध्यापिका व कवयित्री
धनबाद, झारखंड।
★★■★★
बहुत बहुत सुन्दर रचना
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