सैनिक (कविता)- सुमन राठौड़
सैनिक
सैनिक का महात्म्य बढाती है खाकी,
रक्षक की रहती प्रतिक्षण चौड़ी छाती।
न खौफ खाते जांबाज बलिदानों से,
हिय शोभित रखते प्रेम सम्मानों से।
सरहद पर जागते रख हस्त बंदूक,
माँ के वीर सपूत न करते है कोई चूक।
मृत्यु सम्मुख वीर सीना ताने खड़े रहते,
माँ के प्रहरी बन अरि से अड़े खड़े रहते।
आती है उनके सम्मुख कितनी परेशानियां,
परिवार छोड़ लिखते रक्तरंजित कहानियाँ।
हम भारतीय सोते चैन से वो जागे रातों में,
हम अपनों संग रहते सैनिक आघातों में।
रिपु को धूल चटाते रख जान हथेली पे,
इंकलाब बोल गर्व से खाते गोली सीने पे।
उदधि की बर्फीली चट्टानें उनको भाए,
तिरंगे की सौगंध लेकर रणभूमि में आए।
हम होली दीवाली पर खुशियाँ मनाते,
वो दिवस बिताए सेवा व जज्बातों में।
वैरी से अंतिम सांसों तक लड़ते वीर महान,
बहादुरों का हर हिन्दुस्तानी करता सम्मान।
सुमन राठौड़
झाझड
★★★
सुन्दर
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