कसौटी : कैसी हो ?? (आलेख)- गीतिका पटेल गीत

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🌹कसौटी : कैसी हो ??🌹



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एक स्त्री बचपन से ब्याह तक अपने  माता-पिता के आँगन की नन्ही सी चिड़िया होती है। उनके लिए उनकी आन, बान और शान की ख़ातिर जीती है। कुछ भी यदि गलत होता है तो सब उस नन्ही सी चिड़िया को ही ज़िम्मेदार मानते हैं। उसे ही सब का कारण समझा जाता है। फ़िर भी वह अपने माता-पिता की रूह में बसी होती है। मानों जीवन का अभिन्न अंग बन जाती है। फ़िर उनके और उनके सम्मान के लिए क्या कुछ नहीं करती।

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बड़ी होते ही उसकी शादी हो जाती है और किसी दूसरे के घर के आँगन का पुष्प, बहू बन जाती है। नए रिश्ते मिल जाते हैं। सास-ससुर, जेठ-जेठानी, ननद-नन्दोई, देवर-देवरानी और भी जाने कितने रिश्ते जो पराय होकर भी अपने बन जाते हैं। और उस एक पल में ही अपना परिवार पराया सा लगने लगता है। तब ख़ुदको नए रिश्तों में ढालना शुरू करती है। सभी के साथ अपना नया रिश्ता निभाने में जुट जाती है। सब रिश्तों से भी ज़्यादा इस समय वह अपने पति के लिए जीती है।

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 उसके बाद जीवन में एक और नया पड़ाव आता है। वह माँ बन जाती है। माँ बनते ही उसका जीवन बच्चे के इर्द-गिर्द सिमट सा जाता है। बच्चे के हँसने-रोने से लेकर खाना-पीना, पढ़ाना-लिखाना, खेल-कूद इन्हीं ज़िम्मेदारियोँ में सिमट कर रह जाता है। साथ ही पति की भी पूर्ण ज़िम्मेदारी उस स्त्री पर आ जाती है।

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इन सभी रिश्ते और ज़िम्मेदारियों के बीच वह जैसे अपना जीवन जीना, अपने सपने सब कुछ भूल सी जाती है। इन सबको उनके नाम कर देती है जो उसके जीवन का हिस्सा बन चुके हैं। 

फ़िर भी यदि दुनिया कहती है कि -- "औरत/नारी/स्त्री को समझना बहुत मुश्किल है।" तो उसे किस तरह से, कौन सी कसौटी पर रखकर समझना और परखना चाहते हैं।

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गीतिका पटेल "गीत"

कोरबा, छत्तीसगढ़

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