फिरंगी बहू (कहानी)- मौसमी चंद्रा
फिरंगी बहू
( कहानी)
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ब्रिटेन।चकाचौंध भरा शहर।उस पर क्रिसमस वीक।हर दिन पार्टी.. डांस.. बियर!क्या मर्द, क्या औरत हर किसी के हाथ में चमकते ग्लास!
सुलभा जी और सलिल जी के लिए बिल्कुल नया परिवेश!उन्हें ज़रा भी अंदाजा नहीं था कि ऐसा माहौल देखने को मिलेगा।कहाँ उनकी बड़ी बहू जिसका पहनावा साड़ी, सलवार-कमीज से अलग कभी कुछ और नहीं रहा;और कहाँ छोटे बेटे समीर की पत्नी!जिसके कपड़े बमुश्किल घुटने छूते।
अंजान देश.. बोली अलग..और तो और उन्हें अपने बेटे-बहू भी फिरंगी लग रहे थे।
तीन ही दिन हुए थे उन्हें अपने बेटे-बहू के पास आये हुए।
सुलभा जी को जैसे अपच हो रहा था यहां रहना।इतना नंगापन झेला नहीं जा रहा था।
"सुनो जी,करवाओ टिकट, मुझे अपने देश वापस जाना है।यहाँ नहीं रह पाऊंगी।"
सलिल जी पत्नी की मनःस्थिति समझ रहे थे।
"कुछ दिन तो रह जाओ।तुरंत वापसी के लिए बोलूंगा तो छोटे को बुरा लगेगा।कितना हर्षित है हमारे आने से।और तुम अब क्यों जाने की जिद कर रही हो।वहां तो आये दिन बड़ी बहू की कड़वी बातों से दुःखी रहती थी।मन बहलाने के लिए यहाँ लाया तो यहाँ भी परेशानी।"
"आपको मेरी परेशानी कभी नज़र आई है जो आज आएगी।घर की बहू छोटे कपड़े पहने,बाहर के मर्दों के साथ हंसकर बात करे।अच्छा लगता है क्या?ऊपर से मुख्य दरवाज़े के नीचे सुराख!रात में सड़कों की बिल्लियां कमरे में घुस आती है।मैंने सुराख को कपड़े से ढंक दिया,तो कहती है डोंट कवर मम्मा! मैंने जानबूझकर रखा है .. स्ट्रीट कैट्स बाहर की ठंड से बचने के लिए अंदर आ सके।अब आप ही बताओ पागलपन है की नहीं?"
पत्नी को बहू की नकल उतारते देख सलिल जी की हंसी छूट गयी।
"मुझे अभी तुम्हीं पागल लग रही हो।"
--उन्होंने हंसकर कहा।
"सच में पागल ही हूँ मैं जो आपसे बात करने आयी।"
वो गुस्से से बोली और बालकनी में लगी कुर्सी पर जाकर बैठ गयी।
थोड़ी देर में कंधे पर गर्माहट महसूस हुई।
पलटकर देखा तो छोटी बहू तनु शॉल ओढ़ा रही थी..
--मम्मा स्वेटर इज नॉट एनफ।यहाँ के वेदर की आपको आदत नहीं है।ठंड बढ़ रही है आप अंदर चलो,मैंने सूप बनाया है।"
बेड पर बिठाकर तनु ने पैरों पर ब्लैंकेट डाल दिया।हाथ में सूप का कप देते हुए बोली।
-- "डिनर में क्या लोगे?"
"रहने दो मैं बना लूँगी कुछ।तुमलोगों को बाहर ही खाना है।हमारे लिए क्यों परेशान हो रही हो।"
सुनते ही वो बेड पर बैठ गयी ।उनकी हथेली को चूमते हुए बोली-
"यू आर माय मॉम टू।आपके लिए कुछ भी करना ,परेशान नहीं करता मुझे।मैं हमेशा से चाहती थी कि आप दोनों यहां आकर रहो।पर मुझे लगता था अपना वतन छोड़कर कम्फर्टेबले नहीं रहोगे यहाँ।आप पराए देश में सिर्फ हमारे लिए आये हो.. ये बात हमें कितनी खुशी दे रही, बता नहीं सकती।तो काम की आप टेंशन न लो मम्मा।वी वांट ओनली योर बलेजिंग्स.."
कहकर उसने उनके गालों को चूम लिया।
सुलभा जी की आँखें भर गई।उनका हाथ आशीष के लिए उठ गया।
तनु मुस्कुराई और फिर उठकर बिल्लियों पर ब्लैंकेट डालने लगी जो ठंड से बचने के लिए रात बिताने अंदर आ गयी थी।
सुलभा जी उसे स्नेह से निहारने लगी।आज उन्हें ये बिल्लियां और अपनी फिरंगी बहू बहुत ज्यादा प्यारी लग रही थी।
- मौसमी चंद्रा
कवयित्री व कहानीकार
पटना,बिहार।
★★★
अच्छी कहानी है।
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