विवेकानंद जयंती विशेष राष्ट्रीय युवा दिवस (आलेख)- ममता कुमारी
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#विवेकानंद जयंती विशेष राष्ट्रीय युवा दिवस
'उठो,जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए' का संदेश देने वाले युवाओं के प्रेरणा स्रोत समाज सुधारक युवा युग-पुरुष महान दार्शनिक और अध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद जी का आज जयंती है. उनकी जयंती के दिन ही हर वर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में मनाया जाता है,स्वामी विवेकानंद जी को अमेरिका में साइक्लोनिक के हिंदू के नाम से पुकारा जाता है अमेरिका में धर्म संसद में जब स्वामी विवेकानंद जी ने अमेरिका के भाइयों और बहनों के संबोधन से भाषण प्रारंभ किया तो पूरे दो मिनट तक आर्ट इंस्टिट्यूट ऑफ शिकागो में तालियां बजती रही। 11 सितंबर 1893 का वो दिन हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गया।
भारत में एक देशभक्त सन्यासी के नाम से जाने जाने वाले स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकता(वर्तमान में कोलकाता) में एक कायस्थ परिवार में हुआ था।उनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्ता था। बचपन से ही नरेंद्र अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के तो थे ही साथ ही साथ नटखट भी दे।अपने साथी बच्चों के साथ वे खूब शरारत करते और मौका मिलने पर अध्यापकों के साथ भी शरारत करने से नहीं चूकते थे। नरेंद्र नाथ 1871 में आठ साल की उम्र में स्कूल गए। 1879 में उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में पहला स्थान हासिल किया। नरेंद्र नाथ 25 वर्ष की उम्र में घर -बार छोड़कर सन्यासी बन गए थे। संन्यास लेने के बाद इनका नाम विवेकानंद पड़ा।
स्वामी विवेकानंद जी का जयंती राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाए जाने का प्रमुख कारण उनका दार्शनिक सिद्धांत अलौकिक विचार और उनके अादर्श है. जिनका उन्होंने स्वयं पालन किया।उनके ये विचार और आदर्श युवाओं में नई शक्ति और ऊर्जा का संचार करता है उनके लिए प्रेरणा का स्रोत साबित हो सकता हैं।
किसी भी देश के लिए युवा उसका भविष्य होता हैं उन्हीं के हाथों में देश की उन्नति की बागडोर होती है।आज के परिदृश्य में जहां चारो ओर भ्रष्टाचार,बुराई,अपरांत का बोलबाला है जो घुन बनकर देश को अंदर ही अंदर खाए जा रहा है। ऐसे में देश की युवा शक्ति को जागृत करना और उन्हें देश के प्रति कर्तव्य का बोध कराना अत्यंत आवश्यक है।विवेकानंद जी के विचारों में वह क्रांति और तेज है जो सारे युवाओं को भेद दें।उनमें नई ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार कर दें।
स्वामी विवेकानंद जी की ओजस्वी वाणी भारत में तब एक उम्मीद की किरण लेकर आई, जब भारत राधा और भारत के लोग अंग्रेजों के जुल्म सह रहे थे।हर तरफ सिर्फ दु:ख और निराशा के बादल छाए हुए थे।उन्होंने भारत के सोए हुए समाज को जताया और उनमें नई ऊर्जा -उमंग का प्रसार किया।
सन्1897 में मद्रास में युवाओं को संबोधित करते हुए.उन्होंने कहा था 'जगत में बड़ी-बड़ी विजयी जातियां हो चुकी हैं।हम भी महान विजेता रह चुके हैं। हमारी विजय की गाथा महान सम्राट अशोक ने धर्म और आध्यात्मिकता की ही विजयगाथा बताया हैं। अब समय आ गया है भारत फिर से विश्व पर विजय प्राप्त करें।यही मेरे जीवन का स्वप्न है और मैं चाहता हूँ कि तुम में से प्रत्येक, जो कि मेरी बाते सुन रहा है।अपने-अपने मन में उसका पोषण करें और कार्यरूप में परिणत किए बिना न छोड़ें।
हमारे सामने यही एक महान आदर्श है और हर एक को उसके लिए तैयार रहना चाहिए, वह आदर्श है भारत की विश्व पर विजय।
इससे कम कोई लक्ष्य या आदर्श नहीं चलेगा।उठों भारत.... तुम अपनी आध्यात्मिक शक्ति द्वारा विजय प्राप्त करों।इस कार्य को कौन संपन्न करेंगा? स्वामी विवेकानंद जी ने कहा 'मेरी आशाएँ युवा वर्ग पर टिकी हुई हैं।
स्वामी विवेकानंद जी को युवाओं से बहुत उम्मीद थी।उन्होंने युवाओं की अहं की भावना को खत्म करने के उद्देश्य से कहा है। यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खड़े हों जाओगे, तो सहायता देने के लिए कोई भी आगे नहीं बढ़ेगा।यदि सफल होना चाहते हो, तो पहले अहं को ही नाश कर डालो।उन्होंने युवाओं को धैर्य,व्यवहारों में शुद्धता रखने, आपस में न लड़ने, पक्षपात न करने और हमेशा संघर्षरत रहने का संदेश दिया।
तीस वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद जी ने शिकागों,अमेरिका के विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और उसे सार्वभौमिका पहचान दिलावायी।
आज भी स्वामी विवेकानंद जी को उनके विचारों और आदर्शो के कारण जाना जाता है।आज भी वे कई युवाओं के लिए प्रेरणा के स्त्रोत बने हुएँ हैं।
*आलेख:-ममता कुमारी, भागलपुर
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बहुत बहुत सुन्दर
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