आपके लिए (लघुकथा)- सुधीर श्रीवास्तव
#आपके लिए
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रीमा ससुराल से विदा होकर पहली बार मायके आयी।मांँ बाप भाई बहन सब बहुत खुश थे।हों भी क्यों न? अपनी सामर्थ्य से ऊपर जाकर बेटी का ब्याह अपनी समझ से अच्छे परिवार में ही किया था।एक दो दिन तक सब उल्लसित थे,फिर रीमा ने माँ के सामने अपने भावनाओं का सागर उड़ेल दिया।रीमा की बातें सुनकर माँ अवाक सी होकर रह गई।
फिर खुद को सँभाला और बेटी को समझाया बुझाया हौंसला दिया।जैसा कि हर माँ करती है।
लेकिन बात इतनी छोटी नहीं है कि वह अपने पति रामसरन से छिपा ले।उसनें अपने पति से सबकुछ बयान कर दिया।रामसरन सामाजिक व्यक्ति थे।अतः उन्होंने धैर्य नहीं खोया और पत्नी से कहा -बेटी को समझा दो,ससुराल में कोई भी कुछ भी कहे वो पलट कर एक भी शब्द न बोले।ससुराल में मायके का जिक्र तक न करे।
परसों बेटी को विदा करना है।समधी जी का फोन आया था।
हँसी खुशी से बेटी को विदा करो।जो भी बेटी को लिवाने आये उसका ढंग से स्वागत सत्कार करो।उन लोगों को अहसास भी न हो कि हमें सब पता चल गया है।
बस! फिर देखना मैं क्या चीज हूँ?हफ्ते दस दिन में मैं खुद जाऊँगा उसके बाद हमारी बेटी को कोई कुछ नहीं कहेगा।सचमुच राज करेगी अपनी रीमा।
मगर....।
रामसरन उकताते हुए बोले-यार!तुम औरतें क्या अगर मगर से दूर नहीं रह सकती?
और फिर हँसी खुशी से रीमा की मायके से विदाई हो गई।
संयोग से रीमा की ससुराल के गाँव का सचिव आदेश रामसरन का मित्र था।
उसने पूरी बात आदेश को बताई और अपना इरादा भी।
आदेश रामसरन और उसके इरादे सुन गंभीर हो गया,फिर बोला-यार!बात तो तेरी ठीक है।मगर अगर कुछ उल्टा न पड़ जाय?
देख भाई!एक तरफ कुँआ और एक तरफ खाई।निकलने का जोखिम तो लेना ही पड़ेगा न।रामसरन के स्वर में बेटी की खुशी के लिए कुछ भी कर गुजरने का संकल्प प्रस्फूटित हो रहा था।
अंततः आदेश को तैयार होना ही पड़ा
फिर रामसरन और आदेश ने जो किया उसेदेख रीमा के ससुर के पैरों तले जमीन खिसक गई।
दर असल रामसरन आदेश के साथ रीमा की ससुराल टिकठी(बाँस से बनी सीढ़ी, जिससे लाश को श्मशानघाट ले जाया जाता है)लेकर गये और बिना किसी औपचारिकता के रीमा के ससुर से कहा-समधीजी जुमा जुमा शादी को अभी माह भर भी नहीं हुए और आप दिनरात अपनी बहू को ताने देने में बड़ी उदारता दिखा रहे हैं कि उसके बाप ने जो दिया अपने बेटी दामाद को दिया।
तो आज उसका बाप वही आपको देने आया है।जो आप के काम आयेगी।आप इसे स्वीकार करें और अपना मन शांत करें।
रीमा के ससुर शर्मिंदगी से गड़े जा रहे थे।उन्होंने रामसरन से क्षमा प्रार्थना की।
रामसरन उन्हें गले लगाते हुए बोला-मेरा उद्देश्य आपको जलील करना नहीं था,कभी बेटी का बनकर सोचिएगा सब समझ में आ जायेगा।
अब चलता हूँ।मैं आपको आपकी बहू सौंप दी उसे कैसे रखना?अब आप की जिम्मेदारी है।
आदेश के साथ रामसरन वहाँ से चल दिए।रीमा के ससुर को ओझल होने तक उन्हें देखते रह गये।
@सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002
मोबाइल-8115285921
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