बाल दिवस विशेष (नाटिका)- अनिता सुधीर आख्या
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साहित्य संगम संस्थान
रा. पंजी. सं.-S/1801/2017 (नई दिल्ली)
बाल दिवस विशेष
नाटिका
*दृश्य 1 *
(बच्चे मोबाइल में व्यस्त है और दो-तीन लोग टहल रहे हैं )
रमा... क्या जमाना आ गया है ,आजकल के बच्चे जब देखो तब मोबाइल में डूबे रहते हैं ,पता नहीं कैसे पेरेंट्स हैं जो बच्चों का ध्यान नहीं रखते ,और इतने कम उम्र में ही मोबाइल थमा देते हैं ।
अब देखो पार्क में आयें है तो कुछ खेलने की बजाय
मोबाइल लिए बैठे हैं ।
बीना ...सच कह रही हो रमा तुम ,एक हम लोगों का समय था कितना हम लोग खेला करते थे कभी खो खो तो कभी बैडमिंटन और शारीरिक व्यायाम तो खेल खेल में ही हो जाता था। उस समय की दोस्ती भी क्या दोस्ती हुआ करती थी।
रमा ... तुमने तो बचपन की वह मीठी बातें याद दिला दीं ,चलो दो चार गेम हो जाये ।
वीना ... पागल हो गयी हो क्या ,इस उम्र में अब हम लोग क्या खेलेंगे ,
बचपन ही याद करती रहोगी या घर भी चलोगी
रमा .... अरे आओ हम भी अपना बचपन जी लेते हैं।
वीना .. सचमुच बड़ा मजा आ गया ,वाह वाह
अच्छा बहुत हो गया , चलो अब घर चलो
रमा ... हर समय घर घर किये रहती हो ।
अरे चलती हूं मुझे तो कोई चिंता नहीं है
मेरी बेटियां पढ़ाई के लिए बहुत सिंसियर है ।
मैं उनको बोल के आई हूँ , वो तो पढ़ाई में व्यस्त होंगी और मुन्नी को बोल कर आई हूं,वो घर के सारे काम कर रही होगी ।
बीना ...तेरी तो मौज है ,अब मुझे ही देख !घर जाकर अभी खाना बनाना फिर बच्चों की पढ़ाई में उनके साथ बैठना ,मेरा तो सारा समय इसमें ही निकल जाता ही निकल जाता है ।
अच्छा रमा क्या मुन्नी को भी पढाती हो तुम ....
रमा ....मुन्नी को पढ़ा कर क्या करूंगी ,करना तो उसे यही काम है ,कौन सा कलेक्टर बनी जा रही महारानी ।और फिर घर का काम क्या मैं करूंगी?
वीना ... अरे वो तो मैं ऐसे ही पूछ रही थी ।
*दृश्य दो *
रमा का घर
मुन्नी मुन्नी कहां मर गई तू ,देख रही है मैं बाहर से आ रही हूं तो रही हूं तो पानी तो पिला दे
आई मेमसाब ..
तू बच्चों के कमरे में क्या कर रही है ?जब देखो वहीं रहती है ,कुछ कामधाम नहीं होता तुझे
वह पढ़ रहे हैं तो उन्हें पढ़ने दे उन्हें क्यों डिस्टर्ब कर रही है चल अपना काम कर ,कामचोर हो गयी है।
रमा सोचते हुए ,मेरी बेटियां मेरा गुरूर है कितना पढ़ती है ,न मोबाइल न किसी से दोस्ती ,ये लोग बहुत नाम कमाएंगी ।
(थोड़ी देर बाद रमा )
बड़ा सन्नाटा लग रहा है देखूँ ये लड़कियां कर क्या रही है
बेटियां मां के आने की आहट सुन अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो जाती हैं और मुन्नी कपड़े तह करने लग गयी।
रमा ....कितनी अच्छी बेटियां हैं मेरी
जब देखो तब यह पढ़ती ही रहती हैं ।
मुन्नी तूने अभी तक कपड़े नहीं तह किये ? अभी सारा काम पड़ा है ,करती क्या रहती है तू सारा दिन अभी खाना भी बनाना है तुम्हें।
(दृश्य 3)
रमा तुम सब लोग अपने अपने काम करो
मैं जरा पड़ोस की आंटी के यहां से होकर आती हूं.
ठीक है मां आराम से जाओ ,और आराम... से आना
रमा के जाने के बाद बेटियां फिर से मोबाइल में व्यस्त हो गई और मुन्नी पढ़ाई में .
मुन्नी कहां हर समय तू किताबों में सर खपाती है आओ तुम्हें मोबाइल में अच्छे-अच्छे गेम दिखाएं.. मुन्नी ...अरे नहीं दीदी
मेम साहब जब बाहर गई हैं तभी मुझे पढ़ने का मौका मिला है ।वह आ जायेंगी तो मुझे उनकी डांट भी खानी पड़ेगी और काम में जुटना होगा होगा।
मेरी परीक्षा आ रही है तो मुझे जैसे ही अवसर मिलता है मैं अपनी पढ़ाई कर लेती हूं ।
इस तरह से घर के कामों के साथ मेरी पढ़ाई भी चल रही है ।
पढ़ाई कर लूंगी तभी मेरे जीवन में सुधार आएगा।
बेटियां मुन्नी कीबातेँ सुन हतप्रभ हो सोच रही हैं
मैं किस को धोखा दे रही हूं
एक तरफ मुन्नी है जो मां के जाने के बाद पढ़ाई कर रही है और हम लोग अपना समय व्यर्थ कर रहे हैं ।
माँ पापा इतनी मेहनत करते हैं और स्कूल की फीस ,कोचिंग की फीस ,सभी सुविधाएं देते हैं और हम लोग मां को धोखा दे रहे हैं ।
और सही अर्थ में मां को धोखा न देकर स्वयं को ही धोखा दे रहे हैं ।
मन ही मन मुन्नी को धन्यवाद देते हुए
मुन्नी तुमने तो हम लोगों की आंखें खोल दी और हमें नैतिकता और शिक्षा का महत्वपूर्ण पाठ समझा दिया । और एक बात मुन्नी हम लोग माँ से तुमहारी
पढ़ाई की बात करेंगे
मुन्नी के चेहरे पर खुशी और बेटियों को आत्मसंतुष्टि ...
बचपन शिक्षा और नैतिकता के मार्ग पर अग्रसर।
अनिता सुधीर आख्या
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हार्दिक आभार आ0
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