गांधी जी के विचारों की प्रासंगिकता (आलेख)- गजानन पांडेय
*गांधी जी के विचारों की प्रासंगिकता*
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महात्मा गांधी - सच्चे अर्थों में भारतीयता का साकार रूप थे ।
उनका जीवन ही संदेश है। उन्होंने सत्य व अहिंसा का मंत्र दिया था।
सत्य - ' सत्य बिना लोगों के समर्थन के भी खडा रहता है, वह आत्मनिर्भर है ।'
- महात्मा गांधी
कबीरदास जी कहते हैं -
' साच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।
जिस हिरदे में साच है, ता हिरदे आप ।'
और इसलिए स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने 'सत्याग्रह '( सत्य के लिए आग्रह ) को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया था ।
गांधी जी- व्यक्ति नहीं, विचार थे। ' भारत ' को समझना है तो ' गांधी दर्शन ' को जीवन में आत्मसात करना होगा क्योंकि उसमें हमारी हर समस्या का हल है ।
स्वच्छता में ही पवित्रता होती है और उन्होंने ' ग्राम विकास ' के साथ स्वच्छता को जोड़ा। उनके इस मंत्र ने आज लोगों में घर - परिवार व पास - पडोस में साफ - सफाई के प्रति जागरूकता पैदा की है।
वे कहते थे - ' मनुष्य, सामाजिक प्राणी है और इसलिए उसे समाज के हित में, अपने कर्तव्यों का भलीभांति निर्वाह करना होगा ।'
' भीड़- आवेश में हिंसात्मक हो जाती है जबकि आज अनुशासित व अहिंसक संगठन के नेतृत्व के लिए बुद्धिमान व निष्ठावान लोगों की जरूरत है इसलिए लोकतंत्र में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है। '
गरीब- ' गरीब के लिए 'रोटी ' ही उसका धर्म है अतः जब तक एक भी समर्थ व्यक्ति बेकार है व उसे भोजन न मिलता हो तो दूसरे व्यक्ति को ' भरपेट भोजन ' करने में शर्म महसूस होनी चाहिए।'
अपने पडोसी के हित का ख्याल रखना ' अहिंसा ' की पहली शर्त है।
उनका कहना था ' भारत गांवो में बसता है ।वह देश के लिए अन्न पैदा करता है और उस पर खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता निर्भर है ।'
इसलिए किसानों के विकास पर देश का भविष्य निर्भर करता है।
उनका कहना था ' जो ग्रामीण किसानों के श्रम व उनके वाजिब हक पर कब्जा करने वाला, सबसे बडा अपराधी है ।'
मौजूदा सरकार द्वारा लागू किया गया नया किसान बिल , उनके सपनों की राह में उठाया गया पहला कदम है।
उन्होंने किसानों से आग्रह किया था कि ' उन्हें अपने बीच से निरक्षरता व गरीबी को दूर करने के लिए दृढ संकल्प लेना होगा। '
वे आधुनिक उद्योग धंधों के साथ- साथ लघु व कुटीर उद्योग को भी फलता - फूलता देखना चाहते थे। उनका विचार था कि हमारे यहां के मिट्टी के बर्तन, हस्तशिल्प की वस्तुएं, खिलौने व कलाकृतियों की विदेशों में भी खूब मांग है। इस रूप में, इसे आवश्यक संसाधन व सुविधाएं प्रदान करके, भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती दी जा सकती है।
वे देश में बनी वस्तुओं का उपयोग करने पर जोर देते थे । आज ' वोकल फार लोकल ' का सूत्र हमें वहीं से मिला है।
हमारे देश में " गौ " को माता का दर्जा दिया गया है। गांधी जी भी ' गो - संरक्षण ' को हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य बताते थे ।'
उनका कहना था ' मद्य - सेवन ' शरीर व आत्मा का नाश करता है और व्यक्ति को पशुतुल्य बना देता है।
बापू , विदेशी भाषा ( अंग्रेजी) में शिक्षा देने के खिलाफ थे। उनका मत था कि ' विदेशी भाषा में शिक्षा का बोझ दिमाग पर पडता है। '
उनका कहना था कि ' प्रांत में- प्रांतीय भाषा और राष्ट्रीय कामकाज ' हिन्दी ' में किया जाए और ' हिन्दी ' को राष्ट्रभाषा ' के रूप में उसका उचित स्थान देने में अब हमें देर न करनी चाहिए।
उन्होंने ऐस बात पर बल दिया था कि '' विद्यार्थी को नीची या ऊंची (उच्च) शिक्षा उसकी मातृभाषा में दी जानी चाहिए। "
समाचार पत्र - गांधी जी का स्वतंत्र मत यह था कि ' समाचार पत्र ' का मूल उद्देश्य सेवा - भाव होना चाहिए और पत्रकार को , पत्रकारिता की विश्वसनीयता को कायम रखने के लिए ईमानदार होना चाहिए।
इस प्रकार, गांधी जी के सपनों का भारत -
' व्यक्ति में अनुशासन,राग - द्वेषजनित अग्यान, अंधविश्वास व जातिद्वेष के दुर्गुणो से रहित व विवेकयुक्त जनतंत्र व राष्ट्र - प्रेम में विश्वास रखनेवाला था । '
गजानन पाण्डेय
हैदराबाद
(मो)9052048880
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