मौकापरस्त (कहानी)- मौसमी चंद्रा

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# मौकापरस्त
(कहानी)

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मैसेज टोन बजते ही सुमि ने वाट्सअप खोला।

     निक का  क्यूट स्माइली के साथ गुडमार्निंग!

इतने दिनों बाद! करीब 2 महीने हो गए थे।और 2 महीने क्या! सच कहा जाए तो 4 महीनों से वैसी बात नहीं हुई ; जैसी हुआ करती थी।

सुबह की चाय उसने कब पी....से लेकर... डिनर कितने बजे किया!सब!

मूड खराब हो, तो सुमि को कॉल...अच्छी खबर हो, तो सुमि को कॉल...

अकेला रहता था।फैमिली दूसरे स्टेट में।मम्मी-पापा,भाई-भाभी उनके बच्चे सब दूर।एक और फैमिली मेम्बर थी।उसकी वाइफ,जो अपने मायके में रहती थी।

पूछा था सुमि ने एक बार--

"तुम साथ क्यों नहीं रखते उसे?"

उसने जवाब नहीं दिया..आवाज़ भारी हो गयी थी।बस इतना ही कहा

--" ये सवाल चुभता है।दर्द देता है।मत पूछा करो।"

सुमि ने फिर कभी नहीं पूछा।

कोई प्रॉब्लम होगी,बनती नहीं होगी आपस में, या उसकी वाइफ का कोई अफेयर होगा किसी से।

अपने हिसाब से ऐसा ही कुछ सोच लिया।अब निकुंज जिसे प्यार से वो निक कहती थी उसे भी उसने अपनी तरह अकेला मान लिया।

दो अकेले मतलब एक पूरा।ये भी सुमि ने मन ही मन मान लिया।

फिर अचानक वो लापता हो गया।हफ्ते बाद उगा।सुमि के ढेर सारे पेंडिंग मैसेजेज के बीच उसका एक रिप्लाई--

     मेरे घर आई एक नन्ही परी!

हैरान-परेशान सुमि ने झट से फोन लगाया।

"कहाँ थे एक हफ्ते से.. और ये नन्ही परी कौन है?"

"एक परी है प्यारी सी"

उसने हंसते हुए कहा।

"क्या कह रहे हो? सही से बताओ"

 जवाब में  फिर निक की  हँसी!

अब चिढ़ गयी वो--

"छोड़ो! मत बोलो! मैं रखती हूं फोन।"

"अरे-अरे रुको यार..!मैं पापा बन गया हूँ"!

पिघला सीसा कैसा चुभता होगा,महसूस किया उसने।

 "पापा!तुम!कैसे..?मतलब.. तुम्हारा बच्चा  है?

"हाँ !बिल्कुल!सौ फीसद"

"पर कैसे?वो तो मायके में थी और तुम??

"मैं जाता रहता था बीच-बीच में, उसका ग्रेजुएशन पूरा हो इसी से छोड़ दिया था मायके।फिर प्रेग्नेंट हो गयी तो सोचा अब डिलीवरी बाद ही लाऊंगा।अब जाऊंगा तो लेता आऊंगा साथ में।"

"पर तुमने कभी बताया नहीं ये सब"

"कितना क्वेश्चन करती हो।चलो बाद में बात करता हूँ।काम में फंसा हूँ।"

दो दिन तक कुछ अच्छा नहीं लगा खाना-पीन,नींद सब गायब। निक का न कोई कॉल न मैसेज।

तीसरे दिन स्क्रीन पर उसका नाम दिखा।

"हाय क्या हाल?कैसी हो?"

नार्मल सी आवाज़ जैसे कुछ हुआ ही नहीं।

"निक कुछ पूछना था तुमसे।"

"हां बोलो"

"तुमसे जब भी मैं तुम्हारी वाइफ के बारे में पूछती थी तुम ऐसा क्यों बोलते थे,मत पूछो,ये सवाल दर्द देता है चुभता है?"

"अरे बाबा जब वाइफ  पास न  हो  तो उसका जिक्र दर्द तो देगा ही न।"

 सफाई से झूठ!

"हम्म सही कहा तुमने,मैं ही गलत समझ बैठी।पर जब तुम्हें अपनी वाइफ से इतना प्यार था तो  फिर मेरे साथ फ्लर्ट क्यों?"

"तुम हो ही कातिल तो कैसे बचें कोई।"

कहकर उसने ठहाका लगाया और इधर-उधर की बात करके फोन रख दिया।

उस दिन के बाद उनदोनों की बहुत फॉर्मल बात हुई।

सुमि ने अपना ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया।थीसिस पूरी करनी थी।धीरे धीरे निक मस्तिष्क से ओझल होने लगा।

आज महीनों बाद उसका मैसेज।अभी वो सोच में डूबी ही थी कि  फोन भी आ गया।

"कैसी हो?"

"ठीक हूँ तुम कहो।"

"सब बढ़िया,बहुत वर्क लोड है पर सोचा आज इंस्टॉलमेंट पर भी समय लेकर तुमसे बात तो करूंगा ही।फ्री हो मिलते हैं न कल!"

आश्चर्य हुआ कुछ  ज्यादा ही फुर्सत मिल गयी इसे।

"छुट्टी है क्या तुम्हारी कल?"

सुमि ने पूछा।

"नहीं! ऑफिस के बाद मिलूंगा.. शाम के 6:30बजे के बाद आता हूँ तुम्हें लेने।फिर चलेंगे लांग ड्राइव पर।"

"ठीक है वाइफ और बेटी को भी ले लेना साथ में।इसी बहाने उनसे भी मिल लूँगी।"

कुछ सोचकर सुमि ने कहा।

"अरे वो यहाँ कहाँ!उसके कजिन की शादी है उसी में गयी है।10-15 दिनों का टूर है।"

"ओ..ओ  तभी ..ऐसा है निकुंज,मैं बिजी हूँ।आजकल फालतू के काम के लिए बिल्कुल समय नहीं निकाल पाती।थीसिस सबमिट करना है।अभी तुमने कॉल करके ही अच्छा खासा टाइम ले लिया मेरा।आगे से बहुत अर्जेंट हो तभी कॉल करना।"

कहकर सुमि ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।

 जो गलती हो गयी थी उसकी पुनरावृत्ति नहीं करनी थी उसे।वापस से नज़रें  किताब पर चली गयी।

       स्टुअर्ट की ,मैन सायकोलॉजी।

--जिसमें उन्होंने लिखा था- सबसे ज्यादा धोखा देने वालों को मौकापरस्त कहते हैं।वो तमाम हथकंडे अपनाता है परिस्थितियों को अपने बस में करने के लिए।

सुमि के चेहरे पर व्यंग्यात्मक हँसी आयी उसने पेज पलट दिया।



- मौसमी चन्द्रा 'ऊँई'
    कवयित्री व कहानीकार
    पटना, बिहार।
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