492 वर्ष बाद जन्मभूमि आगमन (आलेख)- मंगलेश सोनी
रामजन्मभूमि पर इस बार दीपावली अपनी दिव्यता की ओर है, इस दीपोत्सव की छटा कुछ अधिक ही ऐतिहासिक रहने वाली है, यह केवल एक त्यौहार का उत्सव नही। क्योंकि यह कई दशकों में पहली बार होगा जब जन्मभूमि पर दिप जलेंगे। प्रभु श्री राम तो 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या आये थे, परन्तु कलयुग के राम 492 वर्ष के बाद जन्मभूमि पर स्वाभिमान से प्रवेश करेंगे। यह भारत के राष्ट्रपुरुष का राष्ट्रीय स्वाभिमान पुनः लौटाने का दीपोत्सव है। आने वाले समय में श्री राम जी की जन्मभूमि ही हमारी पहचान बनने वाली है। देश की सभ्यता और संस्कृति की पहचान पूछेंगे तो हम गर्व से कह सकेंगे कि अयोध्या हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर है, जिससे जुड़ा है लाखों वर्षो पूर्व का इतिहास जो कभी अन्य संस्कृतियों का रहा है नही। क्योंकि विश्व में सबसे प्राचीन व सर्वव्याप्त संस्कृति सनातन संस्कृति ही रही। यह साक्षात प्रमाण है उस राम का जिसने दशानन के अत्याचारों से दुनिया को मुक्ति दिलाई। रावण का राज्य आज के श्रीलंका, बर्मा, से लेकर आस्ट्रेलिया व मेडागास्कर द्वीपों तक फैला था। प्रभु राम की रावण पर विजय के पश्चात राम की जयजयकार व कीर्ति समस्त विश्व में फैली। बाली सुमात्रा भी इसी समय रामायण कालीन राज्यों के अंग थे, आज भी रामायण व राम यहां की संस्कृति का अंग है। थाईलैंड हो या कंबोडिया सनातन संस्कृति व राम से विश्व के हर देश का जुड़ाव रहा। 492 वर्ष के बाद हिन्दू समाज की सबसे बड़ी विजय के रूप मनने वाला यह उत्सव ऐसे ही नही आया, इसके पीछे वहां काम करने वाले विश्व हिन्दू परिषद जैसे संगठन ही है जिन्होंने संपूर्ण विश्व के हिन्दू समाज को आज भी एक सूत्र में बांधे रखा है। वह एक समय था जब 1964 से अपने जन्म से ही विश्व हिंदू परिषद ने राम जन्मभूमि को अपना मुख्य लक्ष्य बनाकर संपूर्ण भारत में जन जागृति लाने के लिए आंदोलनों का रुख किया। उस समय देश में एक ही आवाज बुलंदी से गूंजा करती थी जिनका नाम अशोक सिंघल था, आप संघ के वरिष्ठ प्रचारक होने के साथ विश्व हिंदू परिषद के प्रमुख नेतृत्वकर्ता रहे। साथ ही जन्मभूमि आंदोलन को आपने अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया। संपूर्ण देश में ग्राम स्तर के कार्यकर्ताओं से लेकर प्रांतीय अधिकारियों तक अच्छा संपर्क और हिंदू समाज की भावनाओं की गहरी परख होने के कारण अशोक सिंघल जन जन के नेता बने। अशोक जी के आह्वान पर लाखों का जनसमूह आंदोलन के लिए दिल्ली पहुंच जाता था आवश्यकता होने पर कई बार अयोध्या में भी कार सेवा करने के लिए सिंघल जी ने आवाहन किए उनके आवाहन पर देश के लाखों युवा अयोध्या जन्मभूमि दर्शन और कार सेवानिमित अयोध्या पहुंचे। जब राम जन्मभूमि का संघर्ष केवल संत समाज और अयोध्या तक सीमित था इस आंदोलन को भारत के गांव-गांव तक पहुंचाने का श्रेय विश्व हिंदू परिषद को ही जाता है, चाहे रामशिला यात्रा हो, जिसे गांव-गांव तक लेजाकर जन जागरण का अभियान चलाया गया। जिसके कारण भारत की जनता की निद्रा टूटी और जन्मभूमि आंदोलन एक क्रांतिकारी आंदोलन बना। कई बार इस आंदोलन में संघर्ष भी हुए हैं जिनमें कई राम भक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दी। सन 1989, 1990 की कार सेवा जब उत्तर प्रदेश में मुलायम यादव का शासन था उन्होंने अयोध्या को किले की तरह सुरक्षित कर दिया, परिंदा भी पर न मार सके ऐसी सुरक्षा का चैलेंज उन्होंने राम भक्तों को किया था चुनोती को स्वीकार करके राम भक्त बड़ी संख्या में पहुंच गए मुलायम यादव की सुरक्षा तैयारियों को राम भक्तों के हौसले ने ध्वस्त कर दिया। तब झल्ला कर आक्रोश में मुलायम यादव ने पुलिस को गोली चलाने का आदेश दिया, हजारों कारसेवक घायल हुए सैकड़ों मारे गए कई कारसेवकों के तो नाम आज तक प्रकाश में नहीं आए। ऐसा कहा जाता है लाशों को पत्थरों से बांधकर सरयू में फेंक दिया गया, सरयू का जल रक्त से लाल हो गया था। प्रशासन के इस घृणित कार्य से भी राम भक्तों का हौसला कम नहीं हुआ। अगली कार सेवा में उससे भी अधिक युवाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और हम सभी जानते हैं, 6 दिसंबर 1992 का वह ऐतिहासिक दिन जब हिंदू समाज के शौर्य का जागरण जन्मभूमि पर संतों के द्वारा हुआ और ऐसी हनुमत शक्ति का प्रकृटीकरण हुआ जिसने जन्मभूमि पर स्थित ढांचे को सिर्फ 4 घंटों में ध्वस्त कर दिया, जो विदित विशाल गुंबद जेसीबी से भी नहीं तोड़े जा सकते थे वे असंख्य राम भक्तों की सदियों की पीड़ा, पराक्रम व पुरुषार्थ के सामने कुछ घण्टे भी न टिक सके।
ऐसा नही की 1990 के पहले हिन्दू समाज मौन रहा हो। राजा महताब सिंह, राजा रणविजय सिंह, स्वामी बलरामचारी, आदि असंख्य वीर राजाओं ने मंदिर की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी। 76 बड़ी लड़ाइयों में लाखों हिन्दुओ का रक्त बहा। आस पास के गांव के सूर्यवंशी राजपूतों ने मंदिर की स्वतंत्रता का संकल्प अपना ध्येय बना लिया। अयोध्या जिला के आस पास के सूर्यवंशियों ने सिर पर पगड़ी, पेर में जूता, छाता नही रखते थे, उन्होंने यह प्रतिज्ञा ली थी कि रामजन्मभूमि का उद्धार नही कर लेंगे तब तक जुता नही पहनेंगे, पगड़ी नही बाधेंगे। 492 वर्ष के बाद अब जन्मभूमि का निर्णय आने के बाद इन सभी गांवों के सूर्यवंशियों ने जूते पहनना और पगड़ी पहनना आरंभ किया। यह अपने आपमें बहुत बड़ा संकल्प था जो पीढ़ी दर पीढ़ी कई सदियों तक अडिग रहा। जिस प्रकार महाराणा प्रताप के चित्तोड़ को पुनः जितने के संकल्प में उनके सैनिकों ने भी किलों में रहना छोड़ा था, आज वही हमें गडुलिए लोहार के रूप में यदा कदा गांवो में दिखाई देते है। वे शक्तिशाली संकल्प ही है जो इतिहास बदलने का सामर्थ्य रखते है।
आज भव्य राम मंदिर का निर्माण देश मे राष्ट्र जागरण का ऐसा उदाहरण बनेगा जो कभी सोमनाथ मंदिर बनकर उभरा। उस समय यदि तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू अपनी मानसिकता के चलते सोमनाथ जीर्णोद्धार के विरोधी न होते, तो आज देश का दृश्य कुछ और ही रहता। इसी मानसिकता के चलते हिन्दुओ के स्वाभिमान की अयोध्या कभी न्याय ना पा सकी। अब भी जब हम भूतकाल पर दृष्टि डालेंगे तो पूर्व की सरकारों द्वारा रामसेतु को तोडने के षड्यंत्र और राम को काल्पनिक पात्र बताने का कुत्सिक प्रयास जो देश की पूर्व सरकारों ने किया। देश ने इस षड्यंत्र को कभी स्वीकार नही किया। संसद से लेकर सड़को तक सरकार का कड़ा विरोध हुआ, देश की आस्था को काल्पनिक बताने वाले नेतृत्व को फिर जनता ने कभी स्वीकार नही किया। देश की विविधता और अनेक विचारों के कारण अवश्य सरकारें बनी और गई। परन्तु देश की जनता राम विरोधी विचार से कभी नही जुड़ी। गोस्वामी तुलसीदास ने राम चरित मानस में कहा है,
" शंकर सहस बिष्णु आज तोहि,
सकहि न राखि राम कर द्रोही।"
अर्थात राम से द्रोह करने वाले को स्वयं शंकर व विष्णु भी शरण नही देते। वही स्थिति रामद्रोहियों की हुई। आज देश में राम भक्तों की सरकार है, राम को राष्ट्र पुरुष मानने वाले विचारों की सरकार है। सारे विघ्न, विपत्ति, संकट शुभ लक्षणों में बदल गए। आखिर हनुमत शक्ति के सामने कोई कैसे टिक सकता था। इतिहास प्रमाण है जब राम जी को आवश्यकता थी जटायु जैसे पक्षीराज ने भी अपने प्राणों को दांव पर लगा दिया। अंगद के रावण के समक्ष पराक्रम को तो हम जानते ही है। ऐसे ही 492 वर्षों के इस संघर्ष में कई जटायु, अंगद, हनुमान, सुग्रीव ने अपना योगदान देकर जन्मभूमि को पाने के प्रयास किए। इन सतत संघर्षो का ही परिणाम रहा जो समाज कभी अपने राजा को भुला नही। राम राज्य के मधुर स्वपन आज भी जनमानस में हिलोरे ले रहे है। आने वाली हर पीढ़ी अपने संकल्प " रामलाल हम आएंगे, मन्दिर भव्य बनाएंगे" को साथ लेकर आगे बढ़ी।
इसीलिए राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर भारत के नव जागरण का आधार बनेगा, यह मात्र एक धर्म स्थल न होकर देश के समाज के सामाजिक एकता का उदाहरण बनेगा। राम का अर्थ जो शबरी को माता माने, राम का अर्थ जो निषादराज को मित्र भ्राता मानकर गले लगाए, राम का अर्थ जो सुग्रीव जैसे सद्गुण व्यक्तित्वों का संग करे, राम का अर्थ जो सज्जन होने पर शत्रु के भाई को भी शरण दे, राम का अर्थ जो राज सत्ता त्यागकर समाज के दृढ़ीकरण के लिए वन वन घूमे, राम का अर्थ जो पिता के वचन को शिरोधार्य मानकर तपस्वी वेश धारण करने में एक क्षण का विलंब न करे, राम का अर्थ जो भाई के लिए स्नेह कभी कम न होने दे। इसी लिए राम को विश्व में आदर्श माना गया, जीवन के हर रिश्ते में राम जैसा व्यक्तित्व बनने का लक्ष्य लेकर ही समाज उन्नत और विकसित बन सकेगा। इसी संकल्पना को राम राज्य कहा गया। आशा है भारत के राष्ट्र पुरुष श्रीराम के भव्य आगमन के यह क्षण "दीपोत्सव" राम राज्य को साकार करने की आधारशिला बनेंगे।
मंगलेश सोनी
युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार
मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश
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