गुरु तेगबहादुर, कश्मीर और सेना (24 नवंबर बलिदान दिवस विशेष) -आलेख- मंगलेश सोनी
सनातन धर्म की रक्षा में गुरुओं के बलिदानों का विशेष स्थान है, उनके पराक्रम व बलिदानों से बहुत हद तक सनातन धर्म की रक्षा सुनिश्चित हुई। औरंगजेब का शासन था, उसके दरबार में एक कश्मीरी पंडित प्रतिदिन उसे गीता के श्लोक सुनाता था, एक बार उसकी तबियत खराब थी, उसने अपने पुत्र को दरबार में श्लोक पढ़ने भेजा। किन्तु वह उसे बताना भूल गया था कि कौनसे श्लोक दरबार में नही पढ़ना। पुत्र ने औरंगजेब को गीता के सारे श्लोक अर्थ सहित पढ़कर सुनाए। गीता के श्लोकों को सुनकर औरंगजेब बोखला गया वह इस्लाम को ही सर्वश्रेष्ठ मानता था गीता के श्लोकों से उसका यह भ्रम टूट गया था और उसे यह आभास हो गया था कि सनातन धर्म मैं ऐसे कई ग्रंथ व धार्मिक साहित्य है जो हिंदुओं को अपने धर्म पर अडिग रहने के लिए प्रेरित करता है। यह जानकर उसने सारे कश्मीरी पंडितों को धर्म बदलने का आदेश सुना दिया, इस्लाम स्वीकार करने पर छोड़ने या इंकार करने पर मृत्युदंड की घोषणा कर दी। इस आदेश से भयभीत होकर समस्त कश्मीरी पंडित गुरु तेग बहादुर की शरण में पहुंचे उस समय गुरु तेग बहादुर जी समस्त हिंदू समाज का नेतृत्व कर रहे थे। सभी सनातन धर्मियों को उनसे बहुत अपेक्षा थी जब कश्मीरी पंडित अपनी यह समस्या गुरु तेग बहादुर को सुना रहे थे तब उनका छोटा पुत्र भी उनके साथ था, औरंगजेब के इस क्रूर आदेश को सुनकर गुरु तेग बहादुर जी चिंतित हो गए, उनके पुत्र गुरु गोविंद सिंह ने उन्हें कहा कि आप सभी सनातन धर्मियों का नेतृत्व करते हैं। तो आपको अपने प्राण देकर भी इनकी रक्षा करना चाहिए हमारे सभी गुरु ने यही किया है। अपने पुत्र द्वारा कहे गए इस कथन को सुनकर गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों को यह कह दिया की औरंगजेब को जाकर यह कह दो कि हम सब के प्रमुख गुरु तेग बहादुर हैं यदि वे इस्लाम ग्रहण कर लेंगे तो हम भी कर लेंगे। कश्मीरी पंडितों का यह कथन सुनकर औरंगजेब आग बबूला हो गया उसने तुरंत अपने सिपाही भिजवा कर गुरु तेग बहादुर को दरबार में बुलवाया । गुरुजी सूचना पाकर स्वयं दरबार में उपस्थित हुए, उन्हें इस्लाम स्वीकार करने का आदेश सुनाया गया परंतु गुरु परंपरा की आन बान शान और अपने धर्म पर अडिग रहने के संकल्प को निभाते हुए गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया। औरंगजेब ने उनका सर काटने का आदेश दिया। उनका बलिदान जहां हुआ। चांदनी चौक स्थिति उस स्थान पर आज गुरुद्वारा निर्मित है। जिसे शीश गंज साहब कहा जाता है, यह जीवंत प्रतीक है उस महा बलिदान का जो कश्मीरी पंडितों की रक्षा में गुरु तेग बहादुर ने हस्ते हस्ते कर दिया। स्वयं मरकर भी दूसरों को बचाने की इसी परंपरा के कारण ही आज भी गुरुओं के समक्ष सारा भारत नमन करता है।
कश्मीर व कश्मीरी पंडितों पर जब जब भी विपत्ति आई, सनातन धर्म रक्षकों ने अपने प्राण देकर उनकी रक्षा की है। उस समय गुरु तेग बहादुर जी जैसे पराक्रमी वीरों ने तो आज भारतीय सेना के रणबाकुरों ने उस परंपरा को संभाले हुआ है। भारत सदैव से ही शांति के पथ पर चला, हमने कभी किसी अन्य देश की भूमि पर कब्जा नही किया, न ही बल पूर्वक किसी अन्य देश की सीमाओं का उल्लंघन किया। परन्तु भारत के इस वैश्विक दृष्टिकोण को उसकी कमजोरी समझ लिया जाने लगा। परन्तु अब भारत और भारतीय सेना से टक्कर लेने की हिम्मत किसी में नही। हमने हर बार अपने पराक्रम से इसे सिद्ध किया है। आज गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान दिवस (24 नवंबर) के पुण्य अवसर पर हर उस सैनिक को भी नमन है, जो देश की रक्षा में सीमाओं पर तैनात है। क्योंकि उन्ही के कारण ही तो हमारी दिवाली, बैसाखी, होली हर त्योहार है।
मंगलेश सोनी
युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार
मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश
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