गुरु की महिमा- प्रेम बजाज
# गुरु की महिमा#
गुरू ब्रह्मा, गुरू विष्णु , गुरू देवो महेश्वर:
गुरू साक्षात् परंब्रह्म, तस्मै श्री गुरूवे नमः
मात-पिता की मुरत आप हो इश्वर की सुरत आप हो ।
कोरा कागज़ होता मन हमारा , उस पर ज्ञान का पाठ लिखाते आप हो ।
जब सब दरवाज़े बंद हो जाते , नया रास्ता आप दिखाते ।
सदाबहार फूलों सा खिलकर महकाते आप,
ज्ञान का भंडार प्रदान करते आप ।
धैर्यता का पाठ पढ़ाते , संकट में हंसना सिखाते ,
नफ़रत पर विजय सिखाते , शांति का आप पाठ पढ़ाते ।
अच्छा - बुरा , पाप - पुण्य का भेद सिखाते आप ।
जल करके दीप की भांति ज्ञान की जोत जलाते आप ,
दे कर विद्या दान हमें , अज्ञान को हर लेते आप ।
गुमनामी के अंधेरों से निकाल कर पहचान बनाते आप,
करते शुरवीरो का निर्माण इन्सान को इन्सान बनाते आप ।
गुरू का महत्त्व ना हो कम चाहे कितनी तरक्की कर लें हम ।
पड़ जाए अम्बर भी छोटा लिखने जो बैठे गुरू की महिमा हम ।
-©प्रेम बजाज,
जगाधरी ( यमुनानगर )
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