“शिक्षक दिवस” : गुरु श्रद्धा एवं सम्मान का उत्सव (आलेख)- अशोक शर्मा
# *“शिक्षक दिवस” : गुरु श्रद्धा एवं सम्मान का उत्सव*#
गुरु शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है, ‘गु यानी अँधेरे से ‘रु यानी प्रकाश की ओर ले जाने वाला। प्राचीन काल की बात करें तो आरुणी से लेकर वरदराज और अर्जुन से लेकर कर्ण तक सबने गुरु की महिमा को समझा और उनका गुणगान किया है। गुरु शरण में जाकर ही भगवान राम भी पुरुषोत्तम कहलाए। एक बार अपने स्वागत भाषण में अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन कैनेडी ने कहा था, ”अमेरिका की धरती पर एक भारतीय पगड़ीधारी स्वामी विवेकानंद तथा दूसरी बार डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के द्वारा अपने उदबोधन से भारतीयता की अमिट छाप जो अमेरिकावासियों के हृदयों पर अंकित हुई है, जो सदैव अमिट रहेगी।“ निःसंदेह यह प्रत्येक भारतीय के लिये अपनी संस्कृति एवं महापुरुषों के प्रति गौरान्वित भाव-विह्वलता से परिपूर्ण श्रद्धा के भावों को अभिव्यक्त करने वाले क्षणों के रूप में रहे होंगे एवं अनंत काल तक रहेंगें है।
“गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़े खोट,
अंतर हाथ संभाल दे, बाहर मारे चोट”
इस बात की प्रमाणिकता में भी कोइ अतिश्योक्ति नहीं है कि जिस प्रकार कुम्हार घड़े को सुंदर बनाने के लिए भीतर हाथ डालकर बाहर से थाप मारता है ठीक उसी प्रकार गुरु शिष्य को कठोर अनुशासन में रखकर अंदर से प्रेम भावना रखते हुए शिष्य की बुराईयो कों दूर करके संसार में सम्माननीय बनाता है।
सम्पूर्ण भारत में श्रद्धेय डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह एक माध्यम है जिससे सभी गुरुओं, शिक्षकों और परामर्शदाताओं के प्रति कृतज्ञता के साथ भाव ग्रही सम्मान एवं अपनी श्रद्धा गुरुजनों के समक्ष प्रदर्शित करना ही एकमात्र उद्देश्य होता है। हमारे समाज में शिक्षक किसी भी प्रकार इंजीनियरों, डॉक्टर, वैज्ञानिक, किसी भी पदाधिकारी या वास्तुकारों से कमत्तर नहीं हैं, शिक्षक ही वो शिल्पकार है जो बाल्यकाल से लेकर युवा मन तक को शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों के बीज रोपित कर हमारी भविष्यरूपी मूर्त शैली को आकार देने में सहायक होते हैं। शिक्षक ही समाज में मनुष्यों को महानतम कार्यों के लिये प्रेरित करने की सामर्थ्य रखते है। आज हम जो भी हैं, भाषा, सोच-विचार और सिद्धहस्त मौलिक व्यवहार की यह नसीहत हमें अपने शिक्षक से ही मिलती है। हम बचपन में स्कूल और शिक्षकों द्वारा बताई गई हर बात, घर आकर अपनी मां और पिता को बताकर बड़ा ही प्रफ्फुलित महसूस किया करते थे। कैसे हम अपने शिक्षक की आज्ञा का अक्षरश: पालन करते थे, तो उनके द्वारा दी जाने वाली सजा के डर से हम जो कुछ भी सुधार करते थे, उसकी बदौलत ही हम आज पेशेवर सफलता के नित नव संतति पर खड़े हैं।
कोविड-19 वैश्विक महामारी में संक्रमण की आशंका के चलते व्यक्ति से व्यक्ति की आपस में दूरी बनाये रखने की बाध्यता के कारण शिक्षण कार्य में अवरोधता से उत्त्पन्न हुई विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी शिक्षक अपने शैक्षिक कर्तव्यों से विमुख नहीं हुये और आपस में दुरी की बाध्यता के बावजूद भी शिक्षा के लिये डिज़िटल तकनीक के उपयोग को अपनाते हुये छात्रों के हित में पूर्ण निष्ठा के साथ शिक्षकों द्वारा कोरोना वररियर्स के रूप में ऑनलाइन कक्षाओं का संचालन किया गया जो कि सार्वभौमिक से रूप गुरुओं का शिक्षा के प्रति समर्पण का भाव एवं शैक्षिक परंपरा के यथातथ्य निर्वहन का सूचक है, इस करुणामय कृत्य के लिये सभी शिक्षकगणों को ह्रदय से वंदन एवं सार्वजानिक अभिनंदन।
प्रचलित दौर में शिक्षा, सेवाभाव के दायरे से निकलकर आर्थिक दृष्टी से लाभ कमाने की ओर भी अग्रसर हो रही है। आज शिक्षा के व्यवसायीकरण ने शिक्षा को बहुत महंगा कर दिया, इस कारण आम जनमानस में शिक्षा की अलख जगाने हेतु लागू किया गया "शिक्षा का अधिकार" भी अपने उद्देश्यों से समझौता करता हुआ प्रतीत हो रहा है। जिसकी वजह से आम नागरिक आर्थिक एवं मानसिक रूप से प्रताड़ित हो रहा है और यह सबका-साथ, सबका-विकास की परिकल्पना को सीमित करेगा। तथापि वर्तमान समय के संघर्षमय एवं मानसिक तनाव से पूर्ण वातावरण में भी शिक्षक एकाग्रता, आत्मविश्वास और श्रेष्ठ विचारों के साथ छात्रों की सभी समस्याओं के समाधानरूपी ज्ञान की अद्भुत संजीवनी से सदैव सराबोर एवं प्रयत्नशील रहते है। सकारात्मकता की छांव और अथक परिश्रम से सफलता के सोपानों के रचियता सभी शिक्षकों का बारम्बार सम्मान और गौरवान्वित भाव से शत शत नमन:।
--© अशोक शर्मा
प्रताप नगर, जयपुर
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