पुस्तक समीक्षा-कबीर यात्रा का बेहतरीन एवं प्रामाणिक दस्तावेज़ है- ऑर्डर ऑफ़ कबीरपंथ ड्युरिंग मॉडर्न इण्डिया- डॉक्टर संगम वर्मा
# कबीर यात्रा का बेहतरीन एवं प्रामाणिक दस्तावेज़ है- ऑर्डर ऑफ़ कबीरपंथ ड्युरिंग मॉडर्न इण्डिया- डॉक्टर संगम वर्मा#
साहित्य की बात करें और विशेष रूप से मध्यकालीन साहित्य की तो भक्तिकाल एक ऐसा काल रहा है जिसे स्वर्ण युग की संज्ञा दी गयी है, क्यूँकि इस काल में ही शताब्दियों से चली आती हुई दासता को तोड़ने के लिए आत्मचेतना के प्रेरक कवियों और समाज सुधारकों का उदय हुआ। रामानंद, रामानुजाचार्य, वल्लभाचार्य, शंकराचार्य, सूर, तुलसी, जायसी, मीरा, दादूदयाल, रैदास, तुकाराम, रसखान, रहीम आदि ने देशभक्ति की लहरों को जगाते हुए मानवतावाद का दिव्य सन्देश दिया। वहीं संत कबीरदास का नाम सर्वोपरि है। कबीर का अक्खड़पन, उनकी भाषा की प्रखरता न केवल अपने समय के समाज के मिथ्याडंबरों का खंडन करती है बल्कि नयी चेतना को जगाती भी है। बहरहाल श्री पूर्णेंदु रंजन जी, जो वर्तमान में चण्डीगढ़ के स्नातकोत्तर राजकीय कन्या महाविद्यालय सेक्टर-42 में बतौर एसोसिऐट प्रोफ़ेसर हैं, और अपने क्षेत्र में काफ़ी बृहद हैं, द्वारा लिखित पुस्तक आधुनिक भारत के दौरान कबीरपंथ का आदेश(ऑर्डर ऑफ़ कबीरपंथ ड्युरिंग मॉडर्न इण्डिया) उनकी यात्राओं का, उस यात्राओं के दौरान दिए गए उपदेशों, विचारों का ही नहीं बल्कि विदेशों में भी उनकी विचारधारा की अस्मिता का स्पष्टाँकन करती है।लेखक अपनी क़िताब की भूमिका में बताते हैं कि यह पुस्तक व्यापक रूप से क्षेत्र कार्य पर आधारित अनुसंधान पर आधारित है, जो कि 2013 और 2016 के बीच की है, और इस अनुसंधान परक पुस्तक पर उन्हें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नयी दिल्ली के तहत प्रमुख अनुसंधान परियोजना के लिए सम्मानित भी कर चुकी है। इस दृष्टि से यह पुस्तक और भी महत्त्वपूर्ण हो उठती है।
जहां तक पुस्तक की बात है और इसके कांटेंट की बात है तो लेखक ने 19वीं और 20वीं शताब्दी से लेकर भारत भर से लेकर विदेशों, रणखंडी और तरैया तक में उनके विचारों का सिलसिलेवार वर्णन को क़लमबद्ध किया है। पंथ शब्द अपने आप में व्यापक धारणा है जो कि उनकी शिक्षाओं पर आधारित है आगे जाकर उनके शिष्यों ने जिनमें धर्मदास का नाम प्रमुख रूप से आता है, ने उनके विचारों को पुस्तकाकार के रूप में और साथ ही साथ नाना अनुयायियों के साथ विचारधारा का प्रसार किया है। इस पंथ में केवल हिंदू धर्म ही नहीं बल्कि मुस्लिम और बौद्ध धर्म के भी अनुयायी शामिल हैं। मेरा मानना है कि आधुनिक समय में कबीर को जानने, समझने हेतु हिंदी साहित्य में परशुराम चतुर्वेदी, आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी, डॉक्टर धर्मवीर भारती, पुरुषोत्तम अग्रवाल आदि चोटी के नाम गिने जा सकते हैं, वहीं इस पुस्तक का नाम भी यथोचित रखा जा सकता है, जो कि अति महत्त्वपूर्ण है। अभी तक के साहित्य रुझान में कबीर को लेकर भारतीय पृष्ठभूमि में ही किताबें लिखी गयीं है, अगर कहीं प्रवासी साहित्य की पृष्ठभूमि में कहीं वर्णन मिलता है तो छिटपुट ही है, इस दृष्टि से यह पुस्तक इस मामले में अधिक सार्थक और विवेचित है। इसके अतिरिक्त क़िताब की ख़ास बात ये है कि इसमें आपको कबीर पंथ से सम्बंधित भारत भरमें सभी मठों, मंदिरों जहां जहां जहां स्थापत्य है, और उनके अनुयायियों की विस्तृत जानकारी आदि का विवेचन एवं विश्लेषण विस्तार से छायाचित्रों सहित दिया गया है... जिससे पुस्तक की शोभा व गरिमा और बढ़ गयी है।
वैश्विक पटल पर कबीर की विचारधारा क्या है, और कहाँ कहाँ तक उस विचारधारा की लहर गयी है, इसकी सही सही पड़ताल यह क़िताब करती नज़र आती है। इससे स्पष्ट होता है कि लेखक ने अपनी पूरी निष्ठा, अनुसंधानपरक दृष्टि से इस क़िताब के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को बख़ूबी निभाया है, और उद्देश्य को सार्थक अभिव्यक्ति दी है।
मेरा निजी तौर पर मानना है कि यात्राएँ सदा व्यक्ति को सुखद अनुभव देती है, और कबीर का वैश्विक पटल पर होना उनकी अस्मिता को और भी प्रमाणित करता है कि कबीर हमारे लिए कितना अहम स्थान रखते हैं... लेखक़ ने अपनी यात्रा के दौरान अपनी कर्तव्यपरायणता का परिचय देते हुए पूर्णतः न्याय किया है। एक अच्छी क़िताब केवल एक व्यक्ति को ही लाभ नहीं देती बल्कि पूरे जनसमूह को लाभान्वित करती है। यूँ तो कबीर को लेकर कई शोध कार्य सम्पन्न हुए, आलोचनाएँ लिखीं गयी, टीकाएँ लिखी गयीं।इनसे इतर यह शोधपरक वर्णन न केवल साहित्य प्रेमियों के लिए, शोध कर रहे शोधार्थियों और साहित्य प्रेमियों के लिए एक अमूल्य निधि है, जिसके लिए लेखक को साधुवाद भी है। पुस्तक विशेष की बात करें तो इसमें कुल 6 अध्याय हैं, जिसमें प्रामाणिक दस्तावेज़ों के साथ कबीर पंथों का, उनके द्वारा स्थापित मठों का, धर्मस्थानों का विशद विवेचन मिलता है। वर्तमान में कबीर की विचारधारा उतनी ही प्रासंगिक है जितनी उनके समय में थीं, ऐसे में यह शोधपरकग्रन्थ अपने नयेपन के साथ सभी प्राचीन एवं नवीन मान्यताओं के साथ प्रासंगिक है। अपने नयेपन के लिए, कबीर पंथ की विचारधारा का सांगोपांग विवेचन को सार्थकता प्रदान करती है। आगे इस पुस्तक का विवरण दिया गया है वो यहाँ से ले सकते हैं।
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लेखक- श्री पूर्णेंदु रंजन
विभाग- इतिहास विभाग
महाविद्यालय- पीजीजीसीजी-42, चण्डीगढ़
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पुस्तक-Order Of Kabirpanth during Modern India
प्रकाशन-अनामिका प्रकाशन, नयी दिल्ली
पृष्ठ-395
मूल्य-999/-(हार्ड बाउंड)
> समीक्षक-
> डॉक्टर संगम वर्मा
> सहायक प्राध्यापक
> हिन्दी विभाग
> पीजीजीसीजी-42, चंडीगढ़-160036
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