बैंग-बैंग (कविता)- डॉ संगम वर्मा
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# ●बैंग-बैंग#
ताबड़-तोड़ गोलियाँ और
फूटते बारूद से उठता धुआँ
मैं खानाबदोश-सा
सीना ताने
छलनी छलनी
होने को तैयार हूँ दुश्मन घर से
शहादत ही मेरी इबादत है
और इबादत ही मेरी शहादत है
दिन-रात, सुबह-शाम
बस एक ही है काम
दुश्मनों की टुकड़ी
को तितर-बितर करते हुए
आगे बढ़ता जाऊँगा
वंदे मातरम, वन्दे मातरम
के स्वर का एकालाप करता जाऊँगा
हर घाटी में छुपे दुश्मनों
को मिटाता जाऊँगा
शरीर से रिसते ख़ून की
परवाह अब किसे हैं?
मेरे हौंसले से दुश्मन की
एड़ियाँ अब घिसे है
मौत? क्या है मौत
अरे! अब मौत की परवाह किसे हैं
चलती है गोलियाँ तो चलने दे
मेरे लहू का रंग उछलने दे
मेरा केसरिया लहरायेगा
लाल आसमान हो जायेगा
बादल राग मल्हार गायेगा
शहीद हूँ शहादत मेरा गहना है
हंसते हंसते इसे मैंने पहना है
देश की हिफाज़त के लिए
ऐसी वफ़ा निभाऊंगा
दुश्मनों को खदेड़ कर उन्हें
उलटे पैर भगा जाऊँगा
मैं सैनिक हूँ भारत का सैनिक हूँ
हिन्दोस्तान का सैनिक हूँ
आतताइयों के लिए पैनिक हूँ
मेरी चौकसी, मेरी सतर्कता
मेरी सच्चाई, मेरी अटलता
जीवन को रोप दिया है
कोई शेष नहीं है जटिलता
पिछली दफ़ा की गोली के
निशाँ अब भी बाकी है
जो देते हैं गवाही मेरी
कितना लड़ा था, कितना अड़ा था
जान सकता हूँ..!
जान सकता हूँ.. देशवासियों..!
कौन-कौन मेरे हित में खड़ा था
मैं हर पल मरता हूँ
तिल-तिल मरता हूँ
घूँट-घूँट मरता हूँ
क़त्ल होता हूँ गैरों से भी
अपनों से भी
सरकारी जुमलों का तमाशा भी देखता हूँ
कभी डीपी कभी स्टेटस
ये है हमारी शहादत का रॉयल स्टेटस?
उठो,जागो,तैयार हो
संकल्प लो,
विकल्प में मत जाओ
धरती बलिदानों की है
हमारे बलिदान को चुक मत कर जाना
एक स्वर में वंदे मातरम वंदे मातरम गाना
जय हिन्द जय हिन्द गाते जाना।
-© डॉ. संगम वर्मा
सहायक प्राध्यापक
हिन्दी विभाग
स्नातकोत्तर राजकीय कन्या महाविद्यालय
सैक्टर 42, चण्डीगढ़-160036
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