दर्द की भाषा (कविता)- कल्पना सिंह
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दर्द की अपनी विशिष्ट भाषा है,
थोड़ी सी क्लिष्ट, अलिपिबद्ध,अस्पष्ट ।
संवेदनहीन,निष्ठुर जनों की समझ से परे,
मनुष्य और पशु के लिए एक समान।
दर्द आश्रित नहीं शब्दों की दया दृष्टि पर।
भावना के रस से ओत प्रोत,संवेदना से अलंकृत,
कभी लय बद्ध छंद के साथ और कभी छंद विहीन
किसी भी तरह अभिव्यक्त हो ही जाता है।
कभी क्रोध,कभी बिछोह,कभी अभाव से
उमड़ पड़ता है दर्द कई रूप धारण कर।
कभी छलक पड़ता है आंखों से,
बह निकलता है निर्मल निर्झर सा।
वास्तव में सहज नहीं है,
दर्द की भाषा को समझ पाना।
इसके लिए पढ़ना पड़ता है,
जीवन के व्याकरण को।
-©कल्पना सिंह
पता:आदर्श नगर, बरा,रीवा (मध्यप्रदेश)
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