बलगम-ए-बहार (हास्य-व्यंग्य)- श्री घनश्याम सहाय
# बलगम-ए-बहार#
तेरे होंठों से तबस्सुम चुरा लूँ तो फिर क़रार आए।
आरिज़ो ओ लब को चुरा लूँ तो फिर क़रार आए।
जबीन-ए-नाज़ पे गाफ़िल है इस तरा से जिन्दगी,
लबों पे लरज़िशें ठहरीं के ज़ालिम बुख़ार हो आए।
ज़ुकाम-ए-क़िस्सा-ए-मंजर अभी कुछ ऐसा ही है,
दम हो चला बेदम मेरा, बलगम ओ ख़ँखार आए।
बनके वो मुहाफ़िज़ मेरा,के फ़लक-बोस बन बैठा,
ज़हालत के सफ़र में किस तरह बीमार बन आए।
तू जान-ए-हयात है मेरी,सुन ऐ शबनमी शबनम,
अहल-ए-चमन,अहल-ए-वफ़ा गुलबहार हो जाए।
क़राबत है कोरोना का,तराज़-ए-हुस्न की नहूसत,
अंदाज-ए-हया ऐसी,के बलगम-ए-बहार हो जाए।
शरारा है निग़ाहों में,ये तराज़-ए-शौक़ का आलम,
इन आँखों की ये शोख़ी कहीं बीमार न हो जाए ।
【तब्बसुम-मुस्कुराहट।आरिज़-रुखसार,गाल।
जबीन-ए-नाज़-महबूबा का चेहरा।गाफ़िल-बेसुध।लरज़िश-कपकपाहट।
मुहाफ़िज़-रक्षक।फ़लक-बोस-आसमानी।
ज़हालत-अज्ञानता।
जान-ए-हयात-जिंदगी की जिंदगी।
शबनम-ओस। बलगम, ख़ँखार--कफ़।
अहल-ए-चमन--चमन के साथी।
अहल-ए-वफ़ा- निष्ठावान।क़राबत-नज़दीकी।
तराज़-ए-हुस्न- हुस्न का अंदाज।नहूसत-मनहूसियत।शरारा-चिंगारी।
तराज़-ए-शौक़-प्रेम करने का तरीका।
अंदाज-ए-हया-शर्माने का अंदाज।】
-©घनश्याम सहाय
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