कुंडलिया छंद विधान
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#● कुण्डलिया छंद विधान ●#
●कुंडलिया मात्रिक छंद है। यह एक दोहा और एक रोला के मेल से बनता है।
●इसके प्रथम दो चरण दोहा के होते हैं और बाद के चार चरण रोला छंद के होते हैं।
●इस प्रकार कुंडलिया छह चरणों में लिखा जाता है और इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं, किन्तु इनका क्रम सभी चरणों में समान नहीं होता।
●दोहा के प्रथम एवं तृतीय चरण में जहाँ 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं, वहीं रोला में यह क्रम दोहे से उलट हो जाता है, अर्थात प्रथम व तृतीय चरण में 11-11 तथा दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
●दोहे में यति पदांत के अलावा 13वीं मात्रा पर होती है और रोला में 11वीं मात्रा पर।
●कुंडलिया रचते समय दोहा और रोला के नियमों का यथावत पालन किया जाता है।
●कुंडलिया छंद के दूसरे चरण का उत्तरार्ध (दोहे का चौथा चरण) तीसरे चरण का पूर्वार्ध (प्रथम अर्धरोला का प्रथम चरण) होता है।
●इस छंद की विशेष बात यह है कि इसका प्रारम्भ जिस शब्द या शब्द समूह से किया जाता है, अंत भी उसी शब्द या शब्द समूह से होता है।
●कुंडलिया के रोला वाले चरणों का अंत दो गुरु(22) या एक गुरु दो लघु(211) या दो लघु एक गुरु(112) अथवा चार लघु(1111) मात्राओं से होना अनिवार्य है।
उदाहरण-
◆कुण्डलिया◆
लाठी में हैं गुण बहुत, सदा रखिये संग।
गहरि नदी, नाली जहाँ, तहाँ बचावै अंग।।
तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे।
दुश्मन दावागीर होय, तिनहूँ को झारै।।
कह गिरधर कविराय, सुनो हे दूर के बाठी।
सब हथियार छाँडि, हाथ महँ लीजै लाठी।
---गिरधर
--संकलित
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