रिश्तों का धन (लघु कथा)- नीरज मिश्रा
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#रिश्तों का धन (लघु कथा)#
सुनयना की शादी हुए 3 महीने हो गए थे । अभी तक तो सब ठीक था। पर नए दौर की स्वच्छंद विचारों वाली बहू और पुराने साजो -सामान में रची बसी सास के बीच तालमेल होना आसान नहीं था। मैं यह बैठे-बैठे सोच ही रही थी ,तभी मेरे एक मित्र मेरे पास आकर बैठे । मैंने उनसे उनका हालचाल पूछा । उनके चेहरे पर एक रहस्यमई मुस्कान थी, जो समझ से परे थी। बिल्कुल गिरगिट के जैसे जब मैंने उनकी बेटी सुनयना के बारे में पूछा तो वह सहज ही बोले , नए और पुराने विचारों का तालमेल सहज नहीं होता है। मैं समझ गई । कुछ तो गडबड है। अनमने ढंग से उठ कर चले गए। आए तो थे कुछ साझा करने, कुछ सलाह लेने ,पर बिन बताए सब कुछ समझा कर चले गए। अब आप कहोगे बिन कहे कैसे पता पर आपको नहीं पता, शब्दों और चेहरों को मैं अच्छी तरह समझती हूं । 3 महीने बाद मेरे वही मित्र पुनः मेरे घर आए । बिल्कुल एक नए अवतार में, हाथ में कुछ था ।गौर किया तो मिठाई का डिब्बा था। मैंने उनका अभिवादन किया और व्यंग्यात्मक लहजे में पूछा -क्या बात है? आज आप विश्व कप की जीती हुई टीम की कैप्टन की भूमिका में दिख रहे हैं ।और यह डिब्बा तो ऐसे जच रहा है। जैसे विश्व कप विजेता की ट्रॉफी हो, जो आपने अपनी टीम के लिए जीती हो। मेरे इस व्यंग पर बहुत जोर से हंसे और बोले महोदया जी आज मैं वाकई एक जीते हुए कैप्टन की भूमिका में हूं। 3 महीने पहले मैं आपके पास अपनी समस्या लेकर आया था । पर आज समस्या के साथ समाधान भी अपने साथ लेकर आया हूं । लिखना और शब्दों के साथ खेलना मेरा काम है।
पर आज उनके शब्दों की भाषा मेरी समझ से परे थी। मैं अचानक ही असली मुद्दे पर आ गई। क्या आप बात बताएंगे? वह बोले मैं आज सही मायने में सुनाना को विदा करके आ रहा हूं। मैं अचंभित थी। सुनयना की शादी हुए 6 महीने हो गए। क्या अभी तक वह आपके साथ ही है? ससुराल नहीं गई ,मैंने एके-47 जैसे सवालों की बौछार करदी उनपर, तब उन्होंने बिना मेरी किसी बात का बुरा माने बहुत ही सहज लहजे में मेरे सभी सवालों का जवाब दिया। और उन्होंने बात बतानी शुरू की ।
मित्र महोदय बोले नए विचारों की बहू और पुराने विचारों की सास यानी मेरी बेटी सुनयना और उनकी सास में 1 महीने बाद ही खटपट शुरू हो गई ।और 2 महीने बाद हालात यह हो गए की दोनों को एक दूसरे की से इतनी नफरत हो गई थी कि वह एक दूसरे का चेहरा तक नहीं देखना चाहती थी। 3 महीने पहले सुनयना बिना कुछ बताए ससुराल से मायके वापस आ गई। उसने अपनी ससुराल की बातें बताई मैं बहुत परेशान हुआ। जब मेरी बेटी ने कहा कि पापा ऐसा हो सकता है कि मेरी सास भी मर जाए और उस पर आंच भी ना आए । मैं उनकी बातों में मुग्ध थी ,पर बड़ी गंभीरता से सब कुछ भूल कर उनकी बातें सुन रही थी। बोले मैंने अपनी बेटी से कहा -हां मेरे पास एक ऐसी दवा है जिसे रोज थोड़ी थोड़ी मात्रा में चाय में डालकर उनको दोगी तो वह 4 महीने में ही मर जाएंगी और किसी को पता भी नहीं चलेगा । मैं उनकी बातों से हैरान थी। कि वह अपनी बेटी को क्या सीख दे रहे हैं ?बिना पूरी बात जाने मैं किसी गलत नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहती थी । वह बोले पर मैंने बेटी के सामने एक शर्त रखी, कि इस दौरान उसे अपने सास की पूरी तरह सेवा करनी होगी। अगर वह कुछ भी कहे तो उनकी किसी भी बात का जवाब नहीं दोगी । मतलब एक आदर्श बहू की भूमिका निभानी होगी। 4 महीने की तो बात है । मैंने उसको ये राज , राज रखने को कहा ।
मैंने सुनयना जैसा करने को कहा वह बिल्कुल वैसा ही करने लगी ।अपनी सास की खूब सेवा करने लगी। उनका पूरा ध्यान रखने लगी। जब सांस की जली कटी का जवाब सुनयना की तरफ से नहीं मिलता, तो वह भी शांत रहने लगी ।अब सुनयना की सास भी अपनी बहू की बहुत तारीफ करने लगी ।जब सास बहू की तारीफ करने लगी तो सुनयना के मन में भी सास के लिए, बनी नफरत दिल और दिमाग से कब गायब हो गई उसे पता ही नहीं चला । जब अचानक से सुनयना परेशान होने लगी अपनी करनी पर उसे पछतावा होने लगा ।आज जब वह मुझसे मिलने आई तो उसकी आंखों में पश्चाताप के आंसू थे। वो रो रही थी। वह रुंधे हुए गले से और बहती आंखों से बोली ,पापा क्या ऐसा नहीं हो सकता। कि उस दवा का कोई तोड़ मिल जाए। मैं उनको नहीं मारना चाहती हूं । वह मुझ पर बहुत विश्वास करती है।मैं उनको बहुत प्यार करती हूं । उनके साथ ऐसा नहीं कर सकती । मुझे समझ में आ रहा था पर फिर भी मैं अच्छे श्रोता का परिचय देते हुए उनकी बात सुन रही थी। वह आगे बताते हुए बोले जैसा तुम सोच रही हो -वैसा कुछ भी नहीं होगा। मतलब कुछ भी नहीं होगा । वह जहर की पुड़िया नहीं है। उससे उनको कुछ भी नहीं होगा ।चाहे तो उसमें से एक एक लिया तुम भी खा कर देख लो वह केवल पिसी हुई चीनी की पुड़िया मात्र है। मेरी उस दवा से रिश्तो में केवल मिठास बढ़ती है जहर नहीं।उसकी आंखों में आंसू थे। मुझे माफ कर दो पापा मैं इतनी अंधी हो गई थी कि रिश्ते की मिठास को समझ ही नहीं पाई और इतना बड़ा गलत फैसला लेने की सोच ली और आपने मेरे हाथों से एक पाप होने से बचा लिया एक संसार को खत्म होने से बचा लिया।और मुझे एक नई सीख दी है। आप जैसे पापा हर बेटी को मिले ,जिससे उनका घर उजड़ने से बच जाए। और फिर मैंने अपनी बेटी को नई खुशियों के साथ विदा किया ।मैं बिल्कुल निशब्द थी जब उन्होंने अपनी बात पूरी कि ।
मैं आप पाठकों को एक बात बताऊं। अगर मैं एक लेखिका हूं ।तो वह मेरे मित्र भी एक मनोचिकित्सक हैं। उन्होंने अपनी सूझबूझ से अपनी बेटी ही नहीं बल्कि कई परिवारों को तिनके की भांति बिखरने से बचा लिया ।क्योंकि बुराई अपना रूप परिवर्तित करके अनुभव जनों में भी सेंध लगाने से बाज नहीं आती है मैंने देखा है घरवालों को तिनके की तरह बिखर ते हुए । यह चिकित्सक मनोचिकित्सक महोदय की एक परिवार को बिखरने से बचाने की एक छोटी सी मुहिम थी। उन्होंने ऐसे ही ना जाने कितनी ही मुहिम चलाई उनके बारे में फिर कभी।
-©नीरज मिश्रा
उरई, जालौन, उत्तर प्रदेश
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