वर्षा श्रीवास्तव की दो कविताएं
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वर्षा श्रीवास्तव
पता :- म. नं. 14 माइनर्स क्वाटर,
जी. एम. कॉम्प्लेक्स,
पोस्ट- डुंगरिया,
तहसील- जुन्नारदेव,
जिला- छिन्दवाड़ा (म. प्र.)
पिन कोड- 480551
जी. एम. कॉम्प्लेक्स,
पोस्ट- डुंगरिया,
तहसील- जुन्नारदेव,
जिला- छिन्दवाड़ा (म. प्र.)
पिन कोड- 480551
1.
#ईश्वर से प्रार्थना #
मेरी थाली में तुमने परोसी
रोटी औ’ सब्जी
हे ईश्वर ! तुमने नहीं दिया किंतु
स्वाद लेने का हुनर ।
मेरे घर की खिड़की से
मेरी दो आँखें देखती हैं
एक लड़ती दुनिया
मैं कैसे सोचना बंद कर
तुम्हें धन्यवाद कह दूँ ?
मुझे नहीं भाते अब
नदियों के पानी
उनमें घुले हैं मेरे अपनों के लहू !
मैं अपनी प्यास किससे बुझाऊँ ?
परिंदें भी जैसे खफा हैं मुझसे
उड़ते नहीं मेरे घर की छत के ऊपर
मैं कैसे उनका मधुर स्वर सुन पाऊँ ?
तुम्हारे विराटत्व रूप के आगे
मुझे ये सृष्टि छोटी लगती हैं
मैं कैसे तुम्हें पूजना बंद कर
भौतिकता में खो जाऊँ ?
मेरे हिस्से की घूप-छाँव
मेरे अपनों की आँखें खोलें
हे ईश्वर ! और तुमसे क्या माँगूँ ?
दे दो मुझे सब देखकर, भूलने का हुनर
ताकि ले सकूँ स्वाद
तुम्हारी दी गयी रोटी का मैं,
या बदल दो मानवता का चेहरा ।
मेरे हिस्से दे दो शांति औ’ सुकून
बदल दो दुनिया को प्रेमियों में,
क्योंकि प्रेम ही एकमात्र उपचार हैं
सब कुछ सुंदर कर सकने का।
-©वर्षा श्रीवास्तव
2.
# मुश्किल हैं#
संभालूँ कैसे उन पल्लवों को
जिन्हें भाया सदा विरक्त होना ?
कैसे रोक लूँ कंठ की माला से
झरते उन मोतियों को
जिन्हें अपना अस्तित्व हैं दिखाना ?
वैसे ही चक्षु के अस्क सम्भालें न सम्भलते हैं,
मैं बहने दे रही हूँ सरिताओं सा निर्बाध ।
मैं नहीं रोकती अब प्रिय तुम्हें !
टूटने दो हिय के तारों को !
टूट जाने दो पैरों की झनकारों को !
टूट जाने दो प्रिय, अब टूट जाने दो !
मैंने एक चिरैया का करुण विलाप सुना हैं,
मैंने देखा हैं उसके घोंसलें को टूटते हुए ।
मेरी दृष्टि से अछूता नहीं रह सका
एक पतंगें का अग्नि को समर्पण ।
निबाह नहीं, तो न सही,
तुम टूटे हिय के टुकड़ों को फेंक देना कूड़ेदानी में ।
तुम एक दफा मुस्का देना
मैं दूर से ही अस्कों का बहना रोक दूँगी ।
तुम अपने टूटे मन को सम्भाल लेना
मैं अपना मन सम्भाल लूँगी ।
अविनाशी नहीं हैं कुछ, सब हैं क्षणभंगुर
तब अफसोस कैसा ? कैसी हैं यह पीड़ा ?
विस्मृत हो जाओं तुम, विस्मृत मैं भी हो जाती हूँ ।
प्रिय मुश्किल हैं अब निबाह करना !
टूटे संबंध के बोझ तले दबना ।
मुश्किल हैं प्रिय, मुश्किल हैं !
-©वर्षा श्रीवास्तव
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