अधूरी तमन्ना (लघुकथा)- प्रेम बजाज

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# अधूरी तमन्ना# 

तम्मन्ना- ए-दिल सो जाएं तेरी बाहों में ,
एक ख़्वाहिश मेरे ख्वाब दिखे तेरी निगाहों में,
जी लेते हम भी चार दिन और सनम जहां में,
ग़र  ले  लेते  आप  हमें  अपनी  पनाहों  में

            ##अलविदा ##


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कितने ख़्वाब देखे थे मैं वकील बनूंगी , बहुत कहा अभी  पढ़ने दो ,  फिर जब कहोगे मैं शादी के लिए तैयार हूं , सोचा थोड़ा समय मिल जाएगा , सुरेश के बारे में बताने का , ऐसे कैसे कह दूं कि मेरे दिल में कोई है , पापा नहीं माने कर दिया रिश्ता पक्का मेरा,  छह महीने बाद शादी , अच्छा खासा कमाता है लड़का,  क्या हुआ  थोड़ा कम पढ़ा है ।

 दो ही दिन हुए शादी को खट-पट शुरू , ना विचार,सोच, जीने का ढंग , कुछ भी तो दोनों का मेल नहीं खाता , कितना एडजस्ट करती और कब तक , सोचा पढ़ाई शुरू कर दें फिर से , नहीं करने दी ।

क्या कमी है यहां तुम्हें  ।

 पढ़ के नौकरी कर के नाक कटेगी ससुराल वालों की , कितनी शौकीन थी घुमने की , स्वछंद विचारों की मैं , बंदिशों में बंध कर रह गई ,  शॅक की निगाह से देखा जाना , उफ़ कैसे लोग हैं , अब तो बच्चे भी बड़े हो गए मेरे , बच्चों की शादी की उम्र हो गई , क्या अब मैं कुछ ग़लत कदम उठाऊंगी  ??

 बस किस्मत का लिखा मान कर , हर अरमान दिल में  दबा कर , अधूरी तम्न्ना ले जी रही थी , मैं जानती हूं मेरे अधूरे ख़्वाब कभी पूरे नहीं होंगे , मेरी अधूरी तम्मन्ना अधूरी ही रहेगी , मगर अब नहीं , कब तक अधूरे 

ख़्वाब पूरे होने का इंतजार करुंगी  , बस अब और नहीं । 

                   **    अलविदा   **


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-©प्रेम बजाज, जगाधरी ( यमुनानगर ) 
9991598421

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