यदि ऐसा हो जाए तो?(हास्य-व्यंग्य)- श्री घनश्याम सहाय
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संगम सवेरा पत्रिका
साहित्य संगम संस्थान
रा. पंजी. सं.-S/1801/2017 (नई दिल्ली)
★यदि ऐसा हो जाए तो?★
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कथा का आधार ही कल्पना है। आइए कल्पना करते हैं एक ऐसी कथा "यदि ऐसा हो जाए तो"।
नाम है लोटन तिवारी,एक प्रतिष्ठित विद्यालय में गणित के शिक्षक हैं।विषय पर पकड़ ऐसी कि हृदय से "वाह" निकल जाए। सभी आदर करते हैं--क्या छात्र,क्या अभिभावक। शहर में सभी लोगों की पसंद थे हमारे गणित शिरोमणि तिवारी जी।क्या दिन,क्या रात,कभी भी कहीं भी,कोई भी छात्र जटिल से जटिल गणितीय समस्या ले कर पहुंच जाए, कभी कोई आनाकानी नहीं, बड़े धैर्य और प्यार के साथ हमारे तिवारी जी समाधान कर डालते।सीधे-सीधे कहूँ तो सभी के हृदय पर राज राजते हैं हमारे प्रिय तिवारी जी।
किन्तु हमारा समाज इस कदर जटिल होता जा रहा है कि जटिल से जटिल गणितीय समस्या को चुटकियों में हल करने वाले तिवारी जी के जीवन का गणित कुछ यूँ बिगड़ा कि तीक्ष्ण बुद्धि तिवारी जी की बुद्धि भी चक्कर खा गयी।
एक दिन की बात है,तिवारी जी कक्षा चार में गणित पढ़ा रहे थे,टापिक था "चक्रवृद्धि ब्याज"।समान्यतया गणित में, यदि वैल्यू ज्ञात न हो तो हम मान लेते हैं,जैस माना कि वस्तु का क्रय मूल्य X है वगैरह-वगैरह---क्रमशः आगे बढ़ते हुए हम अपने साल्यूशन तक पहुँच जाते हैं।तिवारी जी भी गणितीय सिद्धांत के अनुसार 'क्रय-मूल्य' को X मान कर अभी आगे बढ़े ही थे कि एक छात्र बोल उठा--उस्ताद, क्यों माने कि क्रय-मूल्य X है?
हमारे मृदुभाषी तिवारी जी ने कहा--बेटा गणित में ऐसे ही होता है।
छात्र--ऐसा क्यों होता है,गणित में? हमारे घर में जो उस्ताद आते हैं,उन्होंने तो कहा कि,इंसान को "अल्लाह" को छोड़कर कुछ भी नहीं मानना चाहिए,और आप मुझे X मानने को बोलते हैं? मैं "अल्लाह" को छोड़ कुछ भी नहीं मान सकता, कुछ भी नहीं का मतलब कुछ भी नहीं।
ईश्वर, अल्लाह, इसामसीह,वाहे गरु सभी में आस्था रखने वाले हमारे गाँधीवादी तिवारी जी कि बुद्धि अस्त-व्यस्त हो गई, हमारे आस्थावान तिवारी जी समझ नहीं पा रहे थे कि क्या जबाब दें,कैसे 'X' को 'अल्लाह' मान लें। विषय में दक्ष तिवारी जी समझ नहीं पा रहे थे यह गणित शास्त्र में धर्मशास्त्र कैसे प्रवेश कर गया। गाँधीवादी तिवारी जी का मस्तिष्क झनझना उठा,उनके अंदर के गाँधी अब धीरे-धीरे भगतसिंह में जागृत होने लगे थे।कक्षा में बच्चों के उपहास का पात्र बन चले हमारे तीक्ष्ण बुद्धि तिवारी जी।
जो तिवारी जी कल तक बच्चों से आदर प्राप्त किया करते थे,आज इस नये आए बच्चे के कारण उपहास के पात्र हुए जा रहे हैं।तिवारी जी ने मन ही मन सोचा चलो 'X' की जगह 'अल्लाह' ही रख लेते हैं,कम से कम प्रश्न तो हल हो जाएगा--
किन्तु अचानक हृदय भय से काँप उठा--कहीं बुद्धिजीवी लोग नाराज न हो जायें---कहीं किसी के आस्था पर चोट न पहुँच जाए। इसी उधेड़बुन में लगे तिवारी जी के हृदय में विराज रहे गाँधी जी पूर्णतः भगतसिंह में परिवर्तित हो चुके थे। अचानक तिवारी जी बढ़े और लड़के के कस के एक चाटा धर दिए,लड़का रोने लगा---छुट्टी हुई--घर चला गया।
अगले दिन स्कूल खुला,लड़का भी आया--लड़के का बाप भी आया और बाप के साथ शहर के बुद्धिजीवी भी आए, फिर पत्रकार भी आए। तिवारी जी की पेशी हुई,तिवारी जी ने समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन कोई भी तिवारी जी के तर्क से सहमत नहीं था और अंततः गाँधीवादी तिवारी जी, "साम्प्रदायिक" घोषित कर दिए गए---आरोप लगा,सामाजिक समरसता को भंग करने का।अब तिवारी जी कानूनी प्रक्रिया से दो-चार होने की तैयारी में हैं। शायद कल अखबारों में खबर भी आए, शहर का सबसे लोकप्रिय गणित शिक्षक साम्प्रदायिक।
समाज के छद्मवेशी बुद्धिजीवियों की छद्मता से आहत, हमारे प्रिय,सबके प्रिय तिवारी जी अनायास बोल उठे---
या ख़ुदा,
या तो मेरी ज़बां को बेज़बां कर दे,
या फिर मुझे हिंदू से मुसलमां कर दे।
आज आर्यभट्ट भी होते तो शायद----
गणित की किताबों में बहुत सारे ईश्वरीय नाम होते हैं जैसे राम,कृष्ण, शंकर आदि-आदि, वहाँ तो कोई समस्या नहीं होती तो फिर यहाँ क्यों? क्या कोई बुद्धिजीवी बताएगा मुझे?या फिर, साम्यवाद और समाजवाद के ख़तरे में पड़ जाने के डर से चुप रह जाना वाजिब समझते हो।
यह बस कथा है,इसका किसी के साथ कोई संबंध नहीं है। आज के माहौल के अनुसार कहीं यह कथा वास्तविक रूप ले-ले तो ? स्थिति विकट हो सकती है।
---घनश्याम सहाय
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