दैनिक श्रेष्ठ सृजन-31/03/2020

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संगम सवेरा पत्रिका
साहित्य संगम संस्थान
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दैनिक श्रेष्ठ सृजन-31/03/2020
संपादक (दैनिक सृजन) - वंदना नामदेव
हार्दिक शुभकामनाएँ🌷🌻🌹

श्रेष्ठ रचनाकार- 1.आo केशरी सिंह रघुवंशी हंस जी

श्रेष्ठ रचनाकार- 2.आo भाष्कर बुड़ाकोटी "निर्झर" जी
श्रेष्ठ रचनाकार- 3.आo के आर कुशवाह हंस जी

एवं

श्रेष्ठ टिप्पणीकार- आo भारत भूषण पाठक जी


1

31 मार्च 2020
 शीर्षक- अहंकार
 विधा छंद ( ताटंक छंद)
 विधान 16 14 कुल 30 पदांत 3 शुद्ध गुरु।
 
अहंकार काले नग जैसा, विष बीजों को बोता है। 
वो मन बुद्धि को भ्रमित करता, महा विनाशक होता है। 
दीन दुखी पर दया नहीं है, अज्ञान तमस ढोता है। 
"मैं" मेरा  ही सब कुछ समझे, सज्जन को दुख देता है।
 
चित्त को करें विक्षिप्त सदा, चिंतन नहीं विवेकी है।
इज्जत से खिलवाड़ करे वो, निज मति का ही टेकी है। 
अहंकार जब बड़ता है तो, नीति रीत कब भाती है। 
अहंकार की हस्ती मिटती, प्रकृति सबक सिखाती है।
 
दुर्गुण महा विनाशक होता, अहं स्वंय को खाता है। 
औरों उनके जीवन पर भी ,वो अधिकार जताता है। 
अपनी खुशियों की खातिर वो, सबको आंसू देता है।    
जीवन में जो आगे बढ़ते, उनसे बदला लेता है।
 
-- केशरी सिंह रघुवंशी हंस

2

31मार्च 2020
 शीर्षक- अहंकार
 विधा :- छंद (दोहे)
 
"अहंकार  ही दर्प है,  अहंकार  अभिमान।
 उपजे नित अज्ञान से, समझे सदा महान।।
 
 काम क्रोध निज लोभ में,  करे द्वेष अरु भेद।
नित-नित तन से टपकता, अंहकार का स्वेद।।
 
करे नाश नित देह का, अंहकार अंजान।
है घातक यह जगत में, करे दिखावा शान।।
 
अहंकार  विध्वंस  है,   मर्यादा  से  दूर।
अहंकार की आग में, जले वही भरपूर।।
 
मैं-मैं की नित भावना, करे सदा अपमान।
अहंकार में आदमी, लगता मलिन जहान।।
 
अहंकार जन जो करे,  रहे दुखी संसार।
रहे दूर परिवार से, मिले नहीं अब प्यार।।
 
अहंकार  मत  कीजिए,   मिलता  प्रेम  जहान।
जीवन खुशियों से भरे, नित-नित मिलता मान।।" 
 ©®सर्वाधिकार सुरक्षित
        भाष्कर बुड़ाकोटी "निर्झर"
        पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड

3

31/3/2020
शीर्षक- अहंकार  
 
 जीवन है अनमोल,
   छोड़ दो ये कटु बोल
      प्रेम में ही छुपा सार
            गाओ प्रेम गीत रे। 
 
 नश्वर ये काया यहाँ
   मानो मिथ्या माया यहाँ
      त्याग अब अहंकार
          गाओ प्रेम गीत रे। 
 
 देश हित करो काज
    दुनिया करेगी नाज
       हो जाओगे भव पार
           गाओ प्रेम गीत रे। 
 
 काम क्रोध वासना को
    छोड़ द्वेष  भावना को
        हंस राज छोड़ रार
           गाओ प्रेम गीत रे। 
 
       -- के आर कुशवाह "हंस"
          टेकनपुर  , ग्वालियर

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