दैनिक श्रेष्ठ सृजन-04/03/2020(वंदना सोलंकी)

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संगम सवेरा पत्रिका
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दैनिक श्रेष्ठ सृजन-04/03/2020
संपादक (दैनिक सृजन) - वंदना नामदेव
हार्दिक शुभकामनाएँ🌷🌻🌹
श्रेष्ठ रचनाकार- आoवंदना सोलंकी जी
एवं
श्रेष्ठ टिप्पणीकार- आoमान बहादुर सिंह जी




4 मार्च 2020
शीर्षक-"चाटुकार इतिहासकार"
(लेख)

हमारा भारतवर्ष ऋषि-मुनियों का देश है।जहां अनेक महान वेदज्ञ,शूरवीर चक्रवर्ती राजा महाराजा हुए जिनकी कीर्ति विश्वविख्यात थी।मनुज जन्म अवतारी राम कृष्ण से लेकर महाराणा प्रताप,पृथ्वीराज चौहान जैसे बलवान योद्धा हुए।
भारतवर्ष सदा से संस्कृतियों और संस्कारों का देश रहा है ।
यहाँ की उन्नत संस्कृति तथा विपुल अथाह धन संपदा को देख दूसरे देश के लोगों ने
इसे लूटने का कार्य किया ।
मुगल,मंगोल, हूण, शक, यवन,अंग्रेज आदि सभी ने इसे भरपूर लूटा फिर हम पर हुकूमत भी करने लगे।औऱ हमें नीचा दिखाने व स्वयं को सर्वोपरि मॉन के उद्देश्य से हमारी सनातन संस्कृति व सभ्यता एवं इतिहास से छेड़छाड़ करने लगे।

भारत के इतिहास को आधुनिक रूप में लिखने या लिखवाने के लिए अंग्रेजों ने जो छेड़खानी की थी उससे यही प्रतीत होता है हमारे देश के इतिहास को उन्होंने निज उद्देश्य की पूर्ति हेतु तोड़ मरोड़ कर लिखवाया था।

अंग्रेजों ने छल-बल तथा कूटनीति से भारतीय इतिहास पर पूरी तरह से कब्जा करने का विचार किया तब उन्हें तलवार की अपेक्षा यह मार्ग सरल लगा कि इस देश का इतिहास, भाषा और धर्म बदल दिया जाए। उनका मानना था कि बदली हुई संस्कृति के परिवेश में जन्मे, पले और शिक्षित भारतीय अपनी संस्कृति की गौरव-गरिमा के प्रति इतने निष्ठावान व संवेदनशील नहीं रह सकेंगे। अस्तु उन्होंने भारत के इतिहास की प्राचीन घटनाओं, नामों और तिथियों को तोड़ मरोड़कर अपनी इच्छानुसार प्रस्तुत किया या करवाया।
इस योजना के अन्तर्गत अंग्रेजो और वैज्ञानिकों , इतिहासकारों और शिक्षा-शास्त्रियों ने लेखकों और अनुवादकों के माध्यम से ईसाई धर्म का अधिकाधिक प्रचार प्रसार किया और भारत की व्यापक,गौरवशाली अविच्छिन्न एकात्मक समाज की प्रतिष्ठा को छिन्न भिन्न करने का अभियान चलाकर लोगों को बरगलाया कि भारतीय सभ्यता इतनी प्राचीन नहीं है जितनी कि वह बताई जाती है, रामायण और महाभारत की घटनाएँ कपोल कल्पित हैं।वे कभी अस्तित्व में थीं ही नहीं.. आदि-आदि।

अंग्रेजी सत्ता से प्रभावित या डरे हुए अनेक भारतीय धन और प्रतिष्ठा के लालच में अंग्रेजी हुकूमत के तलवे चाटने लगे।
आम व्यक्ति की तो क्या बात कहें,भारत का एक विशिष्ट वर्ग भी अंग्रेजों की चाटुकारिता में लिप्त हो गया। फिर तो इतिहास बदलना ही था।

स्वतंत्रता के बाद भी हमारे देश में गुलामी की मानसिकता वाले लोगों की कमी नहीं है, न तो प्रशासनिक स्तर पर, न शिक्षा
के स्तर पर ,न बौद्धिक स्तर पर और न ही चिन्तन या दर्शन के स्तर पर। अब भी वे लकीर के फकीर बने गलत इतिहास को पढ़े व पढ़ाए जा रहे हैं।

वर्तमान सरकार द्वारा हमारी प्राचीन सभ्यता, संस्कृति व इतिहास को पुनर्जीवित करने का सराहनीय कदम उठाया गया है।अब समय आ गया है कि हम सभी भारतवासी मिलकर हमारे समृद्ध इतिहास को पुनः स्थापित करें व उस पर गर्व करें।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित

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