दैनिक श्रेष्ठ सृजन-26/02/2020(आशुतोष त्रिपाठी आलोक)

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संगम सवेरा पत्रिका
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दैनिक श्रेष्ठ सृजन-26/02/2020
संपादक (दैनिक सृजन) - वंदना नामदेव
हार्दिक शुभकामनाएँ🌷🌻🌹
श्रेष्ठ रचनाकार- आ0 आशुतोष त्रिपाठी " आलोक " जी
एवं
श्रेष्ठ टिप्पणीकार- आ0 कलावती करवा षोडश कला जी




26 फरवरी 2020
शीर्षक- षोड़श कला ( गद्य / पद्य )

सोलह कलाओं को जो रखे ,तीनो लोक में हुआ नहीं,
युगों युगों तक स्थान ये खाली ,सहज भाव से भरा नहीं।
भारत की पावन मिट्टी पर,कृष्ण ही ऐसे अवतारी थे,
सभी कलाओं को रखते जो,दूजा कोई मिला नहीं।

श्री धन संपदा प्रथम कला,पाकर बनते धनवान हैं,
खाली हाथ न कोई जाता,आत्मा से धन के खान हैं।,
सहज नहीं मिलता है किसी को,धन वैभव जीवन में
भाग्यवान होते ऐसे जन,जो धनात्मा से धनवान हैं।

भू अचल संपत्ति दूसरी, कला का फिर स्थान है,
पृथ्वी का राज भोगने को,जन्म से ही महान है,
आज्ञा शिरोधार्य करें सब,हंसी खुशी से जिसका,
क्षेत्र वासियों के मन का,राजा जो भगवान है।

कीर्ति यश प्रसिद्धि तीसरी,कला का अगला नाम है,
मान प्रतिष्ठा कीर्ति पताका,फैले यश का गुणगान है।
श्रद्धा व विश्वास दिलों में,रखते जिसके प्रति हर जन
धरती पर नज़रों में मेरे, वह ही असली धनवान है।

वाणी की सम्मोहकता चौथी, श्रेष्ठ कला का नाम है,
जिसकी मधुर मधुर वाणी से,महका तन मन धाम है।
क्रोधी जन सुध बुध खोकर,शांत हृदय धारण कर लें
मन में भक्ति भावना भरना,हर पल सुबहो शाम है।

लीला आनंद उत्सव है, पांचवीं,नाम कलाओं का अगला
जीवन की लीला को रोचक ,मोहक कर दे जो विरला,
कामुक व्यक्ति विरक्त हो जाते,भावुकता में बंधकर
ऐसे अतिसंयोक्ति भरे फिर, मन हो जाए पगला पगला।

सौंदर्य कांति आभा छठवीं,उत्तम कला का नाम है,
रूप देख मन स्वतः आकर्षित,उमंग में सुबह शाम है।
मुखमंडल हर बार देख कर,पुनः निहारने को मन चाहे
जन्नत का लगे हूर कोई,याद वह आठों याम है।

विद्या मेधा बुद्धि सातवीं,महान कला का नाम है
विद्याओं में सभी निपुण,फिर भी दिखते आम हैं।
वेद वेदांगों के संग जो,युद्ध संगीत कला ज्ञाता
पारंगत होते सबमें यह, जीवन की रक्षा काम है।

आठवीं विमला पारदर्शिता,उपयुक्त कला अभिमान है
छल कपट का मन में जिनके,तनिक नहीं स्थान है,
नज़रों में एक समान सभी,छोटा बड़ा कोई नहीं
सबको समदर्शी बन देखें,रखते हर पल मान हैं।

उत्कर्ष की प्रेरणा संग नियोजन,होती है नौवीं कला
युद्ध हो चाहे जीवन पथ हो,कर लेते हैं दूर बला,
शक्ति पुंज होता इतना,प्रेरणा हर मानव लेकर
लक्ष्य भेदकर जीवन का अपने,कर लेते अपना भला।

ज्ञान नीर क्षीर विवेक का, दसवीं कला में जिसे महारत
समाज को को अपने विवेक से,दिशा दिखाने में हैं रत,
हंस के जैसे गुण वालों का,होता जग में अपना स्थान
शीश झुकाते हर वर्गों के,बालक युवा वृद्ध सत सत।

क्रिया कर्मण्यता ग्यारहवीं,सोलह कलाओं में भारी
इच्छा मात्र से दुनिया का, पूरा करते ये तनधारी,
प्रेरणा बनते हैं सबका,कर्म विमुख जो मानव हैं
स्वयं को महान बनाकर के, बन जाते कर्माधिकारी।

योग चित्तलय है बारहवीं,जीवन की एक मुख्य कला
मन केंद्रित कर आत्मा में यहां, जीवन का कर लिए भला,
मृत्यु को भी जीवित करने की,है जिनके अंदर शक्ति भरी
विटप है जीवन के इस लोक में, शाखाओं पर योग फला।

अत्यंत विनय कला तेरहवीं,मानव जिनसे गुणवान बने
स्वामी हो चाहे जगत का क्यों न,अहंकार कभी न ठने,
विनयशीलता गौ माता की,अनुसरण करना सिखलाए
मानव महामानव बन जाता, गुण से जो भी पड़े सने।

चौदहवीं कला यथार्थ सत्य जो,जीवन सन्मार्ग पर लाए
परहेज न हो कटु सत्य बोल में,भले किसी के न मन भाए,
धर्म की रक्षा के खातिर बस ,सत्य है हर पल टिका हुआ
ब्रह्माण्ड में इस जीवन का सार,बिन खोजे जो मिल जाए।

आधिपत्य पंद्रहवीं कला, स्थापित करना कर्म महान
गुणी हुआ वह व्यक्ति यहां,प्रभावित जिससे हुआ जहान,
अगर जरूरत पड़ जाए , आधिपत्य प्रभाव दिखाने को
पीछे कभी भी रहे नहीं,जब जब दिखलाना हो शान।

अनुग्रह उपकार सोलहवां,अंतिम है यह गुण महान
निज उन्नति के संग संग जिसमें,पर उन्नति का रहे ध्यान,
निः स्वार्थ भाव से कर उपकार,जग का सदा भला करें
सोलह कलाओं को धारण,करते केवल गिरिधर भगवान।
-स्वरचित मौलिक
-©️आशुतोष त्रिपाठी " आलोक "

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