दैनिक श्रेष्ठ सृजन- 31/12/2019 (रूपेंद्र गौर)

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दैनिक श्रेष्ठ सृजन
साहित्य संपादक- वंदना नामदेव
हार्दिक शुभकामनाएँ-आ0 रूपेन्द्र गौर जी
31दिसंबर 2019
शीर्षक-' लालसा'
         ( दोहा छंद)
आज  मनुज की लालसा, दिन दिन बढ़ती जाय, 
कितना  ही  वो  ठूंस  ले,  उदर  नहीं  भर  पाय।
विकट  लालसा   हाय  रे,  मीठे  पर  मंडराय, 
पेट पहुंच उधम करे, फिर खुद खाट बिछाय।
धन वैभव की लालसा, कभी न होती पूर्ण,
देख लिया इंसान को, अन्दर  तक  संपूर्ण।
आज लालसा में बहुत, उलझ चुका इंसान, 
जितनी  पूरी  हो रही, उतना अरु अरमान।
अंध लालसा के चलते, मानव हुआ मशीन, 
विरादरी  में  स्वयं  की, कहलाता  है  दीन।
मनुज लालसा का कहीं, दिखता नहीं है अंत, 
फैल  चुका  है  दायरा,  इसका  आज  अनंत।
लालच का इंसान को, अजब लगा है रोग, 
दान  धरम की  लालसा, को ना पालें लोग।
देश प्रेम की लालसा, लेकर चलें जवान, 
इसी  चाह  के वास्ते, बनते  सदा महान।
बहुत  लालसा  पालते,  रहते  हैं  इंसान,
अचरज करता देखकर, ऊपर से भगवान।
    -@रूपेन्द्र गौर

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