www.sangamsavera.in
संगम सवेरा पत्रिका
फरवरी 2020 अंक हेतु रचनाएँ आमंत्रित
👉👉कृपया स्क्रीनशॉट, फोटोकॉपी या पीडीएफ न प्रेषित करें। यूनिकोड फॉन्ट में टाइप की हुई रचनाएँ जो सर्वपठनीय होने के साथ-साथ कॉपी-पेस्ट हो सके, वही चयन में शामिल होगी।
ग़ज़ल मतला- इबादत इबादत इबादत नहीं है। वो जिसमें हक़ीकी इताअत नहीं है। (इताअत=अधीनता/आज्ञापालन)
बिछड़ तो गया अपने कच्चे मकां से। मगर अब ज़रा सी भी राहत नहीं है।।
मैं शायर हूँ ये ईश्वर का करम है। महज़ इसमें मेरी करामत नहीं है।।
वहाँ जाके बसने से क्या फायदा है। जहां पर दिलों में मुहोब्बत नहीं है।।
किसी दर्द मंद की खुशी छीन लेना। ज़माने ये कोई शराफत नहीं है।।
जो तूने कहा मुझको अ-मेरे प्यारे। मुझे उससे कोई शिकायत नहीं है।।
बुराई का बदला बुराई से देना। बुजुर्गों की मेरे रिवायत नहीं है।।
मेरे हाथ से क़त्ले ज़ालिम हुआ है। मुझे यूं जरा भी नदामत नहीं है।। ( निदामत= लज्जा, पश्चाताप) मक्ता- वही चापलूसी में रहते हैं "ज्ञानेश"। वो जिनमें कोई काबिलीयत नहीं है।।
ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंमतला-
इबादत इबादत इबादत नहीं है।
वो जिसमें हक़ीकी इताअत नहीं है। (इताअत=अधीनता/आज्ञापालन)
बिछड़ तो गया अपने कच्चे मकां से।
मगर अब ज़रा सी भी राहत नहीं है।।
मैं शायर हूँ ये ईश्वर का करम है।
महज़ इसमें मेरी करामत नहीं है।।
वहाँ जाके बसने से क्या फायदा है।
जहां पर दिलों में मुहोब्बत नहीं है।।
किसी दर्द मंद की खुशी छीन लेना।
ज़माने ये कोई शराफत नहीं है।।
जो तूने कहा मुझको अ-मेरे प्यारे।
मुझे उससे कोई शिकायत नहीं है।।
बुराई का बदला बुराई से देना।
बुजुर्गों की मेरे रिवायत नहीं है।।
मेरे हाथ से क़त्ले ज़ालिम हुआ है।
मुझे यूं जरा भी नदामत नहीं है।।
( निदामत= लज्जा, पश्चाताप)
मक्ता-
वही चापलूसी में रहते हैं "ज्ञानेश"।
वो जिनमें कोई काबिलीयत नहीं है।।
ग़ज़लकार
ज्ञानेश्वर आनन्द "ज्ञानेश"
किरतपुर (बिजनौर)
सम्पर्क सूत्र-9719677533
E-mail address- gyaneshwar533@gmail.com
© copy all the ® rights.
कृपया मेरी यह ग़ज़ल प्रकाशित करने का कष्ट करें धन्यवाद।
मेरी एक नई ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंअगर नफरत हो आपस में, तो फिर कंगाल है दुनिया।।
मुहोब्बत है तो फिर क्या, फिर तो मालामाल है दुनिया।।
बहुत जल्दी सुनो! धरती पे, फिर जन्मेंगें दशरथ वंश।
के रावण राज से रावण, परेशाँ हाल है दुनिया।।
वो जिस पर चढ़ते चढ़ते, लोग अक्सर गिरने लगते हैं।
सुनो ए जाँनशीं, वो जान लेवा ढ़ाल है दुनिया।।
तू रब दे वास्ते सच्चाई दे रस्ते नू निकला है।
ओ यारा, गल ना करना तू ,के तोड्डे नाल है दुनिया।।
जवानी में खुला, ये नर्क है , तो आंख भर आईं।
मियां बचपन में लगता था के नैनीताल है दुनिया।।
हजारों साल से इन्सान, जिसमें फँसते आये है।
अमाँ ज्ञानेश्वर आनन्द, ऐसा ज़ाल है दुनिया।।
ग़ज़लकार
ज्ञानेश्वर आनन्द ज्ञानेश किरतपुरी
राजस्व एवं कर निरीक्षक
सम्पर्क सूत्र-9719677533
स्वरचित ग़ज़ल