दैनिक श्रेष्ठ सृजन- 06/01/2020 (नफे सिंह योगी मालड़ा)
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संगम सवेरा पत्रिका
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दैनिक श्रेष्ठ सृजन
संपादक (दैनिक सृजन) - वंदना नामदेव
6 जनवरी 2020
शीर्षक- "भारतीय सेना "
(वीर रस प्रधान कविता)
जो सरहद पर सैनिक जागे न होते ।
तो हम भी न सोते , तुम भी न सोते ।।
सदा संकटों से लड़ना ही सीखा,
मुख पर हँसी गम कितना हो तीखा।
जो बर्फीली बारिश में बदन न भिगोते,
तो हम भी न सोते , तुम भी न सोते ।।
मुश्किल डगर हो पर नहीं डर साथ में,
तरसती झपकने को पलकें भी रात में ।
जो जंगलों में जीवन बिताए न होते ,
तो हम भी न सोते , तुम भी ना सोते ।।
परवाह न जान की हो देश पे जो आए बात।
पत्थरों पर लेटे रहे साँस रोक सारी रात।
जो संगीनों पर माथा टिकाए न होते ।
तो हम भी न सोते , तुम भी न सोते ।।
नींद से हों लाल आँखें, थक के हों चकनाचूर।
एक घूंट पानी नहीं , खाने की तो बात दूर ।।
जो दिन - रात पसीने से नहाए न होते ।
तो हम भी न सोते , तुम भी न सोते ।।
नजरों में लक्ष्य हो , सांसें इंतजार की ।
जीत के जो गीत गाएँ, बातें करें प्यार की ।।
अगर जोश में जयकारे , लगाए न होते ।
तो हम भी न सोते , तुम भी न सोते ।।
जिद पर जो अड़े रहें , पक्के हों उसूल के ।
दोस्तों जो पहाड़ी, झाड़ी, पसीना व धूल के।।
जो अपनों को छोड़ , कदम उठाए न होते ।
तो हम भी न सोते , तुम भी न सोते ।।
-नफे सिंह योगी मालड़ा
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