दैनिक श्रेष्ठ सृजन -26/12/2019 (अर्चना पांडेय)

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दैनिक श्रेष्ठ सृजन
साहित्य संपादक- वंदना नामदेव
हार्दिक शुभकामनाएँ-आ0 अर्चना पांडेय जी

26 दिसंबर 2019
शीर्षक-"दया"
           (निबंध)
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    दया शब्द का प्रसार असीमित है, अव्यक्त है, अदृश्य है मानव की पृष्ठभूमि दया के शिलान्यास पर आश्रित है अत: दया मानवीय गुण है पशुओं के लिए दया का दूर -दूर तक कोई भावार्थ नही है मानव निर्माण के त्रिगुण रजोगुण, सतोगुण, तमोगुण इस बात के निर्णायक है कि अमुक व्यक्ति के प्रकृति मे कितनी दया है?दया परोपकार की भावना को जन्म देकर मानवता के मार्ग को प्रशस्त करती है। व्यक्ति का कार्य व्यवहार उसकी दया की भावना पर निर्भर करता है । दया के अभाव  में ही सिद्धार्थ ने हंस को तीर मारा था दया की उपस्थिति ने ही देवव्रत  को घायल हंस को गले लगाकर उपचार करने की प्रेरणा दी थी ।
       मेरा मत है कि - दया का गुण हमारे समाज में व्यक्ति के परिवेश, पालन पोषण से ही प्रादुर्भावित होते हैं, पशुओं का हनन करने वाले परिवार में भावी पीढ़ी वैसी ही तैयार होती है मांसाहारी परिवार के बच्चे निर्दयता से पशु पक्षी मारकर खा जाते है शाकाहारी परिवार की पीढियां एक पिपीलिका तक मारने से बचते हैं। दया मानवीय रक्त में समाहित होती है जो सामाजिक पारिवारिक परिवेश से उभर कर वाह्य व्यवहार का रूप धारण करती है भारत दयादिक गुणो से युक्त संतो ऋषियों मुनियों का देश था अब तो सभी वर्गों ने अपने - अपने कार्य क्षेत्र में पाखंड की चादर ओढ़ ली है।
कभी - कभी अतिरिक्त दयालुता हानिकारक होती है आज के वर्तमान व्याभिचारिक होड़ में दयालुता का दुरुपयोग होते हुए भी मैने देखा है दया को भी लालच और स्वार्थ का आवरण पहना दिया जाता है  मन तो तब आहत होता है जब हृदय की भावुकता से ओत प्रोत सर्वोत्तम सम्मान की उच्च भावना को बेवकूफ की कसौटी मे कसक दिया जाता है ।
 विशेष - मेरे अनुसार जीवों पे दया करो लेकिन शठे शाठ्यम समाचरेत उचित पात्र पर दया करो वर्ना अपनी भावनाओं को नियंत्रित करते हुए जीवन के कार्य क्षेत्र में इमानदारी से संलग्न रहो 👏👏👏👏👏।
अर्चना की रचना
कुण्डा प्रतापगढ़ ।

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