दैनिक श्रेष्ठ सृजन-03/12/2019 (रामगोपाल 'प्रयास' )
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संगम सवेरा पत्रिका
साहित्य संगम संस्थान
रा. पंजी. सं.-S/1801/2017 (नई दिल्ली)
E-mail-vishvsahityasangam@gmail.com
दैनिक श्रेष्ठ सृजन
साहित्य संपादक- वंदना नामदेव
हार्दिक शुभकामनाएँ-आ0 रामगोपाल 'प्रयास' जी
3 दिसंबर 2019
शीर्षक-पाखंड
( मनहरण घनाक्षरी छंद )
बाहर है राम राम ,
भीतर कसाई काम,
इसी को पाखंड कहें,
बचकर रहिये ।
बगुले जैसा रंग है,
दिल करिया मंग है,
मौका मिल मरोड़ दें
नहीं कुछ कहिये ।
वैसे तो है ब्रम्हचारी,
मिल जाये गर नारी ,
पहुंचा दें होटल में
सीताराम भजिये।
राम जैसी बाँते करें,
रावण सी घातें करें ,
दशानन के ज्ञान को,
कहाँ-कहाँ रखिये।
बदला अब चरित्र है,
बैरी बनता मित्र है,
परिभाषा पाखंड की ,
नयी-सी लिख रहें।
रिश्ते के भाई बहिन ,
रखा रिश्ते को रहिन,
मनाते रँग रलियां
मासूम दिख रहे ।
ट्यूशन पढ़ाते हैं,
मेलजोल बढ़ाते है,
'काम' का सिद्धांत लिखें,
बाग में मिल रहे ।
गंगा जी नहाने आये,
पाखंड को साथ लाये,
युवती है नहा रही,
कैसे निरख रहे ।
-रामगोपाल 'प्रयास'
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रा. पंजी. सं.-S/1801/2017 (नई दिल्ली)
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साहित्य संपादक- वंदना नामदेव
हार्दिक शुभकामनाएँ-आ0 रामगोपाल 'प्रयास' जी
3 दिसंबर 2019
शीर्षक-पाखंड
( मनहरण घनाक्षरी छंद )
बाहर है राम राम ,
भीतर कसाई काम,
इसी को पाखंड कहें,
बचकर रहिये ।
बगुले जैसा रंग है,
दिल करिया मंग है,
मौका मिल मरोड़ दें
नहीं कुछ कहिये ।
वैसे तो है ब्रम्हचारी,
मिल जाये गर नारी ,
पहुंचा दें होटल में
सीताराम भजिये।
राम जैसी बाँते करें,
रावण सी घातें करें ,
दशानन के ज्ञान को,
कहाँ-कहाँ रखिये।
बदला अब चरित्र है,
बैरी बनता मित्र है,
परिभाषा पाखंड की ,
नयी-सी लिख रहें।
रिश्ते के भाई बहिन ,
रखा रिश्ते को रहिन,
मनाते रँग रलियां
मासूम दिख रहे ।
ट्यूशन पढ़ाते हैं,
मेलजोल बढ़ाते है,
'काम' का सिद्धांत लिखें,
बाग में मिल रहे ।
गंगा जी नहाने आये,
पाखंड को साथ लाये,
युवती है नहा रही,
कैसे निरख रहे ।
-रामगोपाल 'प्रयास'
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